हम अभी जस्ट मैरीड ही हैं. हाँ नहीं तो लॉक डाउन में ही कर लिए शादी. क्या है कि अम्मा जी को नया अचार रखना था सो मर्तबान ख़ाली करने थे. जबे देखो तबे परधान जी का फ़ोन मिलाए के कहें…"लाली की अम्मा से कहि देव हम बीस जन आई के भौंरी डरवाय लै जैहैं. बियाह तो अबहिने करी लें. हमार अचार न चलिहे तब तक." बेचारी अम्मा ने पिता जी का उठना-बैठना मुश्किल कर दिया. पिता जी कहते ही रह गए कि हम अच्छा मर्तबान खरीद के दे देई जो समधिन मान जाए. अम्मा को डर था कहीं लॉक डाउन के चक्कर में बिटिया कुँआरी न रह जाए. ख़ैर पंडित जी को कुछ दे दिवा के बियाह हो गया.
आज तीसरे दिन बारिश के बाद तनिक धूप निकली तो कमरा में रोशनी हुई. ई थोड़ा और पास आकर बोले,
"सुनो बहुत सुंदर लग रही हो. आज देखा तुमको रोशनी में...आओ न एक सेल्फ़ी खींचे"
"हाय दैया, अभी कोई देख ले तो"
"आओ न हम झुंझुन का मोबाइल मांग के लाए हैं" कहते हुए ई हमारे बाजू में खड़े होकर सेल्फ़ी लिए. हम शरम के मारे अपना मुंह इनके पीछे छुपा लिए. अम्मा जी के आवाज़ देते ही मोबाइल जेब में रख के बाहर भागे.
ई का सामने देखकर हमारे हाथ पैर फूल गए. इनके बुशर्ट पर हमारे होंठ के निशान... वो भी पीछे से. हम दरवाजा, दीवाल सब बजा दिए पर ई मुड़े तक नहीं. "हाय दैया-3" कहकर हम दिवाल पर खोपड़ी दे मारे. थोड़ी ही देर में ई झनझना के बुशर्ट फेकते हुए कमरे में घुसे.
"कर लियो मन की...का जरूरत थी यहाँ चुम्मी लेने की?"
हम कुछ नहीं बोले तो ढूंढते हुए अंधेरे में आ गए.
"अरे हम गुस्सा कहाँ रहे जो तुम बुरा मान गई. बस एक बार सब ठीक हो जाए हम भी घूमने जाएंगे. पियार करने को थोड़ी मना किए वो तो सब लोग चिढ़ा दिए तो…"
"मग़र हम चुम्मी नहीं लिए थे. हम तो बस…"
"का हम तो बस...अब बोलो न?"
हम कुछ बोलते इससे पहले ही मीठी अपने चाचा को बुला ले गई. हम चुपचाप खड़े कमरे की खिड़की से छनकर आ रही धूप देखने लगे. 'का अजीब है अंधेरे में दिखे न और उजाले में धूल के कण भी सोना माफ़िक चमके. इंसान सच माने तो का माने…'
तनिक देर में घर में हाहाकार मच गया. इतना सुना कि मीठी के चाचा को परधान के घर बुलाया गया. सब एक-दूसरे को चुप करा रहे हैं, कोई न जान पाए कि इनका कॅरोना टेस्ट मंडप वाले दिन हुआ था. हम जड़ के समान खड़े रह गए. अम्मा तनिक देर में आकर हमारे कमरे की कुंडी बाहर से लगाने लगीं. हमने बहुत पूछा कोई कुछ न बोला, ऊपर से सब हमको ऐसे घूरे जैसे हमही कुछ किये हैं.
आज तीन दिन हो गए. किसी से कोई बात नहीं. दिन में दो बार खाना पानी मिलकर फिर दरवाजा बंद. शौच, स्नान के लिए पीछे से निकलकर जाना फिर वहीं वापस आना. कित्ता बदल गया छः दिन में हमारा संसार बस एक अम्मा की हठ की वजह से. जब तब खिड़की से धूप छनकर आ जाती है और उसमें बिखरे रेत के कण हमें अहसास दिलाते हैं कि उजली दुनिया में कितनी गंदगी है!
17 टिप्पणियां:
वाह!अद्भुत कथा शैली एक महान संदेश का पाँचजन्य फूँकती! बधाई!!!
बहुत आभार आपका आदरणीया मीना जी 🙏
बहुत-बहुत आभार मान्यवर 🙏
लोक-जीवन की विवश करती स्थितियों का मार्मिक चित्र खींचा है.
स्नेहिल आभार आपका 🙏
उजली दुनिया में कितनी गंदगी है!..
बड़ा संदेश दिया है आपने और यही कटु सत्य है। ग्रामीण परिवेश ही नहीं समाज के हर क्षेत्र में इसकी बहुलता है।
प्रेरक कथा
अच्छी भाषा पकड़
बहुत सुंदर रचना
बहुत सार्थक सन्देश देती मार्मिक कथा ,अभी कही इसी तरह की घटना घटित भी हुई हैं ,सादर नमन
बहुते ही खूब
सामयिक और सार्थक रचना
सही कहा आपने...हर क्षेत्र में है.
बहुत आभार मन से जुड़ने के लिए!
बहुत आभार मान्यवर 🙏
बहुत आभार आपका 🙏
सही कहा आपने...वही घटना मन में घूम गई और प्रेरित होकर लिख दिया. पूरी बात तो मुझे भी नहीं पता पर कुछ हुआ था.
आभार आपका!
बहुते धन्यवाद महोदय 🙏
बहुत-बहुत आभार आपका!
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