मास्क वाला प्रेम



चलो न

खुले में प्रेम करते हैं

सूरज की रोशनी

जहाँ ठहर जाए ऊपर ही,

जैसे प्रेम के देवता ने

अपने पंख फैलाकर

हमें दे दी हो

हमारे हिस्से की छाँव;

ऐसा करते हैं न

रख देते हैं एक मास्क

उजास के चेहरे पर

और जी लेते हैं प्रेम भर तम.

4 टिप्‍पणियां:

रेणु ने कहा…

रख देते हैं एक मास्क/
उजास के चेहरे पर/
और जी लेते हैं प्रेम भर तम///
बहुत सुंदर और भावनाओं से भरी कल्पना है अभिलाषा जी |

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक सृजन।

Roli Abhilasha ने कहा…

स्नेहिल आभार प्रिय सखी 💐

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार मान्यवर 🙏

मेरी पहली पुस्तक

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