हाँ, मैं छोड़ आया हूँ
किसी को तड़पते हुए अपने पीछे
स्नेह की हाँड़ी पर
संबंधों की गर्माहट
जो मेरे दर्द को सींचती थी,
समय-असमय
मेरी जरूरतों के वक़्त
वो बेहिसाब जीती थी मेरे लिए
मैं उसपर खर्च हुए पलों का हिसाब
रखने लगा हूँ आजकल,
मैं उसकी साँसे कम कर रहा हूँ
छीन कर उसकी मुस्कराहटों के पल,
वो दुनिया से लड़ जाती थी मेरे लिए
मैं चुपकी लगा आया उसके होठों पर
कि मुझसे मुबाहिसे न करे,
मुझे गलतियां करने से न रोके;
मैं जीना चाहता हूँ
खुलकर हंसना चाहता हूँ
मजे लेना चाहता हूँ ज़िन्दगी के
वो हर बार टोकती है
मेरी विफलताओं का हवाला देकर
मैं आगे बढ़ता रहता था
और वो हर जतन करती थी
कि मुझे डूबने से रोक ले
मैं उसे मृतप्राय छोड़कर बढ़ जाता था
मैं डूबता
और वो तिनका बनकर फिर सहारा देती
मेरे सारे गुनाह, अपशब्दों को
भुला दिया करती,
गले से लगाती मुझे
बहुत प्यार करती
मेरा दम घुटता उसके निःस्वार्थ प्रेम में
मैं उससे हर बात जुदा रखता
उसे बहुत फिक्र होती थी
कि कोई बुरा न कह सके मुझे
मैं सबकी सुनता
पर उसकी सुनता ही कब था,
अब भी नहीं सुनूंगा मैं उसकी फिक्र
नहीं चाहता अपनी बातों में
मैं उसका जिक्र:
तभी तो
दफन कर आया उसे
उसी मिट्टी में
जिसकी वो बनी थी,
गला घोंटकर आया हूँ
उस हसरत का
जो मुझे सुनने के लिए थी
गर्म सलाखें आंखों में उतार दीं
अब न आंखें रहेंगी
न मुझे देखने का सपना
साथ लाया हूँ
राख उस चिता की,
रोज़ उस राख के कुछ कण
अपने पांवों में लगाऊंगा
कि ये सफलता की ओर ही बढ़े,
उसकी निःस्वार्थ चाहत
जो मुझे सिर्फ और सिर्फ
अर्श पर देखने की थी
इस टोटके में साथ रहेगी।
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