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हम सब के माथे की शान
हिंदी से है अपना हिन्दोस्तान,
कश्मीर से कन्याकुमारी और
पोरबन्दर से सिलचर तक
हिंदी ने कभी कोई
सरहद या दीवार नहीं बनाई,
सबने वही जुबां बोली
जो समझ में आई;
फिर भी ये उपेक्षा की
दहलीज़ पे ही रहती है:
स्वर-व्यंजनों का स्नेहिल संयोजन
पहले अपनों को ही समझना होगा,
फिर हिंदी की मशाल से रोशन
समूचे विश्व को करना होगा।
ओंकार से आज सब बिस्मिल्लाह कीजिये
कोटि-कोटि इन शब्दों का नमन कीजिये।
हिंदी से है अपना हिन्दोस्तान,
कश्मीर से कन्याकुमारी और
पोरबन्दर से सिलचर तक
हिंदी ने कभी कोई
सरहद या दीवार नहीं बनाई,
सबने वही जुबां बोली
जो समझ में आई;
फिर भी ये उपेक्षा की
दहलीज़ पे ही रहती है:
स्वर-व्यंजनों का स्नेहिल संयोजन
पहले अपनों को ही समझना होगा,
फिर हिंदी की मशाल से रोशन
समूचे विश्व को करना होगा।
ओंकार से आज सब बिस्मिल्लाह कीजिये
कोटि-कोटि इन शब्दों का नमन कीजिये।
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