मुक्ति

PINTEREST IMAGE

हर कविता में शब्द तुम्ही हो
गीतों में लय है गर तुम हो
दिन तुम्हारे नाम से होता है
शाम तुम्हारी यादों के साथ ढलती है,
तुम्हारे सुख-दुःख से मौसम बदलता है,
बारिश हो या तेज धूप चमके
मेरे मन का इन्द्रधनुष
तुम्हे देखकर खिलता है,
तुम जाड़ों की गुनगुनी धूप हो,
गर्मियों की भीनी हवा हो,
हवा में सुगंध हो,
सुगंध में अनुभव हो,
अनुभव में ऊर्जा हो,
मेरा तम भी तुम्हीं हो,
मन की उजास भी तुम हो,
मैं धरा हूँ,
मेरा आकाश भी तुम हो,
मन के नील-गगन में
तुम्हीं तो सहारा देते हो
जब मैं फैलाती हूँ
विश्वास से भी मजबूत डैने,
आसरा होता है तुम्हारा,
जैसे मेरा मोह, मेरा अर्पण हो,
जीवन में तर्पण हो,
अभिशप्त हूँ मैं
तुम्हारे पास नहीं आ सकती,
तुम्हे स्पर्श नहीं कर सकती,
तुम्हे अपना नहीं बना सकती,
अपनी संवेदनाओ से
तुम्हारा दर्द नहीं सहला सकती,
मैं आती थी हर रोज़
गहरी रात में
सन्नाटे के साये से लिपटकर
घंटों बैठी रहती थी तुम्हारे सिरहाने
सहलाती थी तुम्हारा माथा
अपनी अधखुली पलकों से
अनुभव करती थी
तुम्हारे देह की ऊष्मा,
करवट बदलते थे तुम
सही करती थी चादर की सिलवटें,
कभी छू न पाई तुमको
न जी भरके देख ही पाई,
हर रात ढल जाती थी,
दिन सौतन की तरह
हमारे बीच आ जाता था
अब नहीं होता आना-जाना
आत्मा तो अब भी हर पल तुम्हारी है
बस इस देह से मुक्ति मिल जाए.

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php