To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
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खोज नतीजे
हमारे टोटके
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हार गए तुमसे प्यार जताकर,
तुम दूर जाते हो
और मुस्कराते हो,
तुम्हें पता ही है न
हम तुम्हारे बस तुम्हारे हैं,
तभी तो तुमसे हारे हैं;
सुनो, आज हम मजार वाले
फकीर बाबा के पास गए थे,
उन्होंने सुबह और रात वाली पुड़िया दी,
हमें ढाँढस बंधाते हुए बोले,
'थोड़ा-बहुत कै आये तो चिंता मत करना,
डॉ को मत दिखाना'
हमने वो पुड़िया खोलकर
लोबान में सुलगा दी,
'ऐसी शय का हम क्या करेंगे
जो उन्हीं को कै दिला दे?'
फिर एक ताबीज देते हुए बोले,
'ये अचूक है, हाँ उलझन न होने देना':
हमने वो ताबीज बिल्ली के गले डाल दी
अरे उलझे मेरा दुश्मन
तुम तो
हमें हमारे दर्द से भी ज़्यादा प्यारे हो,
हमने भी कह दिया
बिना साइड इफ़ेक्ट वाला
कोई अचूक सा नुस्ख़ा हो तो बताएं,
वो असमंजस में अंदर चले गए,
मुस्कराते हुए आकर एक चिट थमा दी,
'ये शाम तक अपने पर्स में रखो,
गोधूलि में पढ़कर फेंक देना।'
हमने यही किया
सुन रहे हो न पिया...
उस चिट पर बड़ा खूबसूरत लिखा था..
"नकेल बनकर मत रहो
तुम यौवना हो उनके मन की
सब कुछ तो तुम्हारा है
प्यार में दूरी भी जरूरी है,
एक लगाम हो,
ऐसी भी क्या मजबूरी है,
तुम तन की दासी पर
मन की स्वामिनी हो,
ये अमिट सौगात का सौदा है
नहीं कोई दूरी है"
पिया, हमारा मन भी कभी-कभी
अधकचरा सा हो जाता है,
तुम्हारा सम्मोहन
हमारा नींद-चैन, भूख-प्यास जो ले गया
तुम्हारे आस-पास होने के
अहसास का जंतर-मंतर पहनाकर।
तुम दूर जाते हो
और मुस्कराते हो,
तुम्हें पता ही है न
हम तुम्हारे बस तुम्हारे हैं,
तभी तो तुमसे हारे हैं;
सुनो, आज हम मजार वाले
फकीर बाबा के पास गए थे,
उन्होंने सुबह और रात वाली पुड़िया दी,
हमें ढाँढस बंधाते हुए बोले,
'थोड़ा-बहुत कै आये तो चिंता मत करना,
डॉ को मत दिखाना'
हमने वो पुड़िया खोलकर
लोबान में सुलगा दी,
'ऐसी शय का हम क्या करेंगे
जो उन्हीं को कै दिला दे?'
फिर एक ताबीज देते हुए बोले,
'ये अचूक है, हाँ उलझन न होने देना':
हमने वो ताबीज बिल्ली के गले डाल दी
अरे उलझे मेरा दुश्मन
तुम तो
हमें हमारे दर्द से भी ज़्यादा प्यारे हो,
हमने भी कह दिया
बिना साइड इफ़ेक्ट वाला
कोई अचूक सा नुस्ख़ा हो तो बताएं,
वो असमंजस में अंदर चले गए,
मुस्कराते हुए आकर एक चिट थमा दी,
'ये शाम तक अपने पर्स में रखो,
गोधूलि में पढ़कर फेंक देना।'
हमने यही किया
सुन रहे हो न पिया...
उस चिट पर बड़ा खूबसूरत लिखा था..
"नकेल बनकर मत रहो
तुम यौवना हो उनके मन की
सब कुछ तो तुम्हारा है
प्यार में दूरी भी जरूरी है,
एक लगाम हो,
ऐसी भी क्या मजबूरी है,
तुम तन की दासी पर
मन की स्वामिनी हो,
ये अमिट सौगात का सौदा है
नहीं कोई दूरी है"
पिया, हमारा मन भी कभी-कभी
अधकचरा सा हो जाता है,
तुम्हारा सम्मोहन
हमारा नींद-चैन, भूख-प्यास जो ले गया
तुम्हारे आस-पास होने के
अहसास का जंतर-मंतर पहनाकर।
मुक्ति
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हर कविता में शब्द तुम्ही हो
गीतों में लय है गर तुम हो
दिन तुम्हारे नाम से होता है
शाम तुम्हारी यादों के साथ ढलती है,
तुम्हारे सुख-दुःख से मौसम बदलता है,
बारिश हो या तेज धूप चमके
मेरे मन का इन्द्रधनुष
तुम्हे देखकर खिलता है,
तुम जाड़ों की गुनगुनी धूप हो,
गर्मियों की भीनी हवा हो,
हवा में सुगंध हो,
सुगंध में अनुभव हो,
अनुभव में ऊर्जा हो,
मेरा तम भी तुम्हीं हो,
मन की उजास भी तुम हो,
मैं धरा हूँ,
मेरा आकाश भी तुम हो,
मन के नील-गगन में
तुम्हीं तो सहारा देते हो
जब मैं फैलाती हूँ
विश्वास से भी मजबूत डैने,
आसरा होता है तुम्हारा,
जैसे मेरा मोह, मेरा अर्पण हो,
जीवन में तर्पण हो,
अभिशप्त हूँ मैं
तुम्हारे पास नहीं आ सकती,
तुम्हे स्पर्श नहीं कर सकती,
तुम्हे अपना नहीं बना सकती,
अपनी संवेदनाओ से
तुम्हारा दर्द नहीं सहला सकती,
मैं आती थी हर रोज़
गहरी रात में
सन्नाटे के साये से लिपटकर
घंटों बैठी रहती थी तुम्हारे सिरहाने
सहलाती थी तुम्हारा माथा
अपनी अधखुली पलकों से
अनुभव करती थी
तुम्हारे देह की ऊष्मा,
करवट बदलते थे तुम
सही करती थी चादर की सिलवटें,
कभी छू न पाई तुमको
न जी भरके देख ही पाई,
हर रात ढल जाती थी,
दिन सौतन की तरह
हमारे बीच आ जाता था
अब नहीं होता आना-जाना
आत्मा तो अब भी हर पल तुम्हारी है
बस इस देह से मुक्ति मिल जाए.
गीतों में लय है गर तुम हो
दिन तुम्हारे नाम से होता है
शाम तुम्हारी यादों के साथ ढलती है,
तुम्हारे सुख-दुःख से मौसम बदलता है,
बारिश हो या तेज धूप चमके
मेरे मन का इन्द्रधनुष
तुम्हे देखकर खिलता है,
तुम जाड़ों की गुनगुनी धूप हो,
गर्मियों की भीनी हवा हो,
हवा में सुगंध हो,
सुगंध में अनुभव हो,
अनुभव में ऊर्जा हो,
मेरा तम भी तुम्हीं हो,
मन की उजास भी तुम हो,
मैं धरा हूँ,
मेरा आकाश भी तुम हो,
मन के नील-गगन में
तुम्हीं तो सहारा देते हो
जब मैं फैलाती हूँ
विश्वास से भी मजबूत डैने,
आसरा होता है तुम्हारा,
जैसे मेरा मोह, मेरा अर्पण हो,
जीवन में तर्पण हो,
अभिशप्त हूँ मैं
तुम्हारे पास नहीं आ सकती,
तुम्हे स्पर्श नहीं कर सकती,
तुम्हे अपना नहीं बना सकती,
अपनी संवेदनाओ से
तुम्हारा दर्द नहीं सहला सकती,
मैं आती थी हर रोज़
गहरी रात में
सन्नाटे के साये से लिपटकर
घंटों बैठी रहती थी तुम्हारे सिरहाने
सहलाती थी तुम्हारा माथा
अपनी अधखुली पलकों से
अनुभव करती थी
तुम्हारे देह की ऊष्मा,
करवट बदलते थे तुम
सही करती थी चादर की सिलवटें,
कभी छू न पाई तुमको
न जी भरके देख ही पाई,
हर रात ढल जाती थी,
दिन सौतन की तरह
हमारे बीच आ जाता था
अब नहीं होता आना-जाना
आत्मा तो अब भी हर पल तुम्हारी है
बस इस देह से मुक्ति मिल जाए.
तुम्हारी सैलरी
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सुनो, जो तुम अपने मुस्कान वाली सैलरी
दिया करते थे न हर रोज़ हमको
वो बिना बताए ही क्यों बन्द कर दी?
कुछ कहें तो अगले महीने का वादा,
उस पर भी ऐसी अदा से कहते हो
कि हम सच्ची
अगले महीने की बाट जोहने लग जाते हैं;
क्या तुम भी
सरकारी दफ़्तर के बाबू की तरह
झूठा दिलासा देकर टरकाते हो,
अब आकर बता ही दो
कब आएगा ये 'अगला महीना'
सूखे सावन में
ठिठुरते भादों में
या फिर अमावस के चाँद में?
क्या फर्क पड़ता है हमें
तुम्हारी जेब गर्म हो या नर्म
बस अपने अहसासों को जवां रखो,
तुम्हारे माथे पर शिकन
डरावनी लगती है हमे,
हम पूस की रातों में बारिश का पानी
ऊपर न टपकने देंगें
इन हथेलियों की छाँव रखेंगे तुम पर,
बस बिना रस्मों-कसमों के
इस अधूरे मगर अटूट बन्धन को
अपने संवेदनाओं के अहसास से सींचते रहना,
हमें छुपा लेना अपने अंदर कहीं
तिनका-तिनका न बिखरने देना,
हमारे स्नेह के कोटर में नहीं ठहरोगे
तब भी हम तो सर्वस्व तुम्हारे हैं
अपनी आंखों के प्रेम से
पिला दो पूर्णता का अमृत।
दिया करते थे न हर रोज़ हमको
वो बिना बताए ही क्यों बन्द कर दी?
कुछ कहें तो अगले महीने का वादा,
उस पर भी ऐसी अदा से कहते हो
कि हम सच्ची
अगले महीने की बाट जोहने लग जाते हैं;
क्या तुम भी
सरकारी दफ़्तर के बाबू की तरह
झूठा दिलासा देकर टरकाते हो,
अब आकर बता ही दो
कब आएगा ये 'अगला महीना'
सूखे सावन में
ठिठुरते भादों में
या फिर अमावस के चाँद में?
क्या फर्क पड़ता है हमें
तुम्हारी जेब गर्म हो या नर्म
बस अपने अहसासों को जवां रखो,
तुम्हारे माथे पर शिकन
डरावनी लगती है हमे,
हम पूस की रातों में बारिश का पानी
ऊपर न टपकने देंगें
इन हथेलियों की छाँव रखेंगे तुम पर,
बस बिना रस्मों-कसमों के
इस अधूरे मगर अटूट बन्धन को
अपने संवेदनाओं के अहसास से सींचते रहना,
हमें छुपा लेना अपने अंदर कहीं
तिनका-तिनका न बिखरने देना,
हमारे स्नेह के कोटर में नहीं ठहरोगे
तब भी हम तो सर्वस्व तुम्हारे हैं
अपनी आंखों के प्रेम से
पिला दो पूर्णता का अमृत।
मित्र, बस तुम ही तो थे!
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जब तपती दोपहरी में
रेत पर नंगे पाँव चल रही थी मैं,
ठंडी हवा के झोंके के मानिंद,
हौले से आये और
अहसास बनकर ठहर गए पास मेरे
मित्र, तुम ही तो थे!
रेत पर नंगे पाँव चल रही थी मैं,
ठंडी हवा के झोंके के मानिंद,
हौले से आये और
अहसास बनकर ठहर गए पास मेरे
मित्र, तुम ही तो थे!
तुम्हीं तो महसूसते हो मेरी ठिठुरता
दे जाते हो सर्द रातों में
अपना नर्म, गुलाबी अहसास,
तुम्हारे शब्द कड़कते हैं रातों में
और अहसासों की रजाई दे जाते मुझे
मित्र, तुम ही तो थे!
दे जाते हो सर्द रातों में
अपना नर्म, गुलाबी अहसास,
तुम्हारे शब्द कड़कते हैं रातों में
और अहसासों की रजाई दे जाते मुझे
मित्र, तुम ही तो थे!
तुम्हारे स्नेह की चितवन
बस मुझपे ही ठहर जाती है,
कड़कती बारिशों में तुम अपनी
छतरी नई मुझपे लगा गए
तुमपे बरसता रहा मौसम जार-जार
मित्र, तुम ही तो थे!
बस मुझपे ही ठहर जाती है,
कड़कती बारिशों में तुम अपनी
छतरी नई मुझपे लगा गए
तुमपे बरसता रहा मौसम जार-जार
मित्र, तुम ही तो थे!
कल्पनाओं से पगी है ये दुनिया
किंतु तुम्हारा होना यथार्थ है,
मेरे होने में तो बस मैं होती हूँ,
तुम हो तो हम है,
थी टूटी शाख पर नाउम्मीदी की मानिंद
तरु नया बना गए
मित्र, तुम ही तो थे!
किंतु तुम्हारा होना यथार्थ है,
मेरे होने में तो बस मैं होती हूँ,
तुम हो तो हम है,
थी टूटी शाख पर नाउम्मीदी की मानिंद
तरु नया बना गए
मित्र, तुम ही तो थे!
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