To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
लक्ष्मणरेखा...बस तुम्हारे लिए
प्रिय ईश,
तुमसे कुछ भी कहना, बातें करना तुम्हें तो पता ही है मुझे कितना अच्छा लगता था |याद है न अक्सर बिना किसी बात के मैं तुम्हें फोन कर दिया करती थी। कभी-कभी तुम अलग ही अंदाज़ में दिलकश बातें किया करते थे और कभी व्यस्तता के चलते 'कुछ जरूरी हो तो बताओ नहीं तो बाद में बात करना' ये कहकर डिसकनेक्ट कर दिया करते थे पर मुझे तो बस इसी की आदत थी। एक बहाना चाहिए था तुमसे बात करने का। आज फिर से तुमसे वो सब कुछ शेयर करने का मन कर रहा है। वो ढेर सारी बातें जो सिर्फ प्यार में ही होती हैं।
आज भी याद करती हूँ अपनी पहली मुलाक़ात मन सिहर उठता है, लगता है कल की ही बात हो। ज़िद करने लगती है हर साँस की, उसे तुम्हारी ही धड़कनों की तलाश है। तुम्हारी पहल करने की हिचक आज तक बरकरार है लेकिन मैं अभिव्यक्ति में कभी पीछे नहीं रही...पहली बार भी नहीं जब तुम चुपके-चुपके मुझे देखते तो रहे थे पर तुम्हारे करीब जाने की कोशिश तो मैंने करी थी। कितना बेख़ौफ़ होकर मैंने तुम्हारा हाथ थाम लिया था। यहीं से शुरू हुआ था हमारे बीच बातों का सिलसिला। तुम्हारी कृतघ्न होने और मेरी दिल को छू लेने वाली पहली बात, 'थैंक यू आपने बहुत सही टाइम पर आकर मुझे बचा लिया वरना मेरी ड्रेस खराब हो जाती।'
'माई प्लेज़र' कहकर मैं मुस्करा भर दी थी।
तुम अपने काम में मशगूल रहे और मैं तुम्हारे सपनों की दुनिया में और इन सबके बीच हमारी मुलाकातें होती रहीं। तुम्हारी बेपनाह सादगी ने मेरे दिल की मोहब्बत को जवान कर दिया था। मैं तुम्हारे खयालों से लबरेज़ रहती थी। वक़्त-बेवक़्त पास आने के बहाने ढूँढती क्योंकि मुझे तुम्हारे अंदर के प्यार के समंदर का अहसास हो चुका था। कितनी बेबाकी से जवाब दिया था तुमने..'हनी ये प्यार सुनामी होता है जो अपने पीछे बर्बादी का मंजर छोड़कर जाता है। मुझे मत ले जाओ प्यार की दुनिया में।' तुम्हारे इस जवाब पर मेरा मन मथ सा गया था। तुम्हें बाहों में भरकर माथा चूमा था। तुम्हारे इतना करीब आकर ये लगा था कि अब दूर जाना नामुमकिन है। तुम्हें ये यकीन दिलाने की भरसक कोशिश की कि मैं हमेशा तुम्हें अपने प्यार की छाँव में रखूँगी। कोई सुनामी तुम्हें छू भी नहीं सकती मेरे प्यार के सिवा। तुम्हारे अंदर वाला प्यार का मीठा दर्द बाहर आ चुका था। खो से गए थे तुम इन रंगीन गलियों में और मैं प्यार की आगोश में। भूल जाती थी हर कुछ तुमसे रूबरू होने के बाद...'हनी तुम्हें पता है दुनिया सबसे खूबसूरत कब लगती है?'
'तुम्हारी बाहों में आकर।'
'कल तुम्हें पनाह देने को मेरी आगोश न रहे तब?'
'तब हनी ही कहाँ रहेगी..वो तो अपने ईश की है।'
'मान लो हम फिर भी अलग हो जाएं तो क्या करोगी?'
'जान दे दूँगी अपनी..यही सुनना चाहते हो न तुम मगर मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली। मुझे पता है तुम्हें मुझसे ज़्यादा प्यार कोई नहीं कर सकता। मैं हमेशा तुम्हारे आस-पास रहूँगी छाया बनकर..पर आज अचानक ये ख़याल कैसे आया?'
'कुछ नहीं बस ऐसे ही।' मैंने बहुत कोशिश की जानने की पर तुम कुछ न बोले। मुझे ऐसा लगा जैसे कुछ होने वाला था। फिर कई दिनों तक मिलना तो दूर तुम्हारी कॉल तक नहीं आयी बस एक मैसेज के सिवा, 'हनी, अब मिलना पॉसिबल नहीं।' पता है तुम्हें क्या बीती मुझपर। लगा जैसे किसी ने चेतनाहीन कर दिया हो मेरा शरीर। मैं निःशब्द सी खुद में गुम हो गयी और तुम न जाने किस दुनिया में। कैसे खुद को सम्हाला तुम्हारी यादों के साथ। अपनी भावनाओं को मैंने घुटते देखा है जैसे समंदर किनारे रेत पर कोई मछली दम तोड़ देती है।
फिर मुझे सच का पता चला। मैं बदहवास सी भागती हॉस्पिटल पहुँची जहाँ तुम्हारी माँ मौत से लड़ रही थी। ये मेरी बदकिस्मती थी या सच को इसी तरह से सामने आना था कि मेरी आँखों के सामने माँ के वो आखिरी शब्द निकले...बहू का ध्यान रखना। तुम्हारी पत्नी तुम्हें ढाँढस बंधा रही थी। मेरे कदम खुद-ब-खुद पीछे हट गए। कुछ भी नहीं बचा था मेरे पास, सांत्वना के दो शब्द भी नहीं। मैं हॉस्पिटल से बाहर आ गयी। ये तय नहीं कर पा रही थी कि मैं छली गयी या नियति ने मेरे साथ कोई नाइंसाफी की। इतना सब कुछ हो गया और तुमने मुझे सिर्फ दो बोल बोले..सॉरी। क्या इतना कमजोर था मेरा प्यार जो सच नहीं सुन पाता?
मैं सड़क के मंजिलविहीन रास्ते पर निकल पड़ी थी। अचानक सामने से आती हुई कार दिखी। इसके बाद क्या हुआ कुछ नहीं जानती। जब मैंने आँखे खोलीं खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पाया और इसके बाद सारा मंजर तुम्हारी आँखों के सामने था। अफसोस है कि तुम कुछ गलत समझ बैठे। आज मुझे उस इंसान के साथ देखकर हिकारत से मुँह फेर लिया। मैं उस इंसान को जानती तक न थी। फिर जब तुमने सारे रिश्ते-नाते ही खत्म कर दिए तो कहना-सुनना कैसा। अगर मैंने तुमसे प्यार किया था तो तुमने भी तो कुछ कमिटमेंट्स किए थे। क्या हक़ था मुझे हमसफ़र बनाकर बीच मंझधार में छोड़ देने का। कुछ वक्त साथ गुजारकर मीठी बातें करना ही तो मोहब्बत नहीं होता। प्यार कोई सीढ़ी नहीं होता ये तो वो ऊँचाई है जो खुद में ही मुक़म्मल है। इसके लिए कोई जिस्मानी रिश्ता होना ही तो जरूरी नहीं होता। तुम एक बार मुझसे सच बताते तो सही तुम्हें क्या लगता है मैं तुम्हारी मजबूरी नहीं समझती। मैंने प्यार किया है तुमसे और प्यार पानी पर खिंची कोई लकीर नहीं जो वक़्त के साथ मिट जाएगी। तुम महज मेरे शब्दों में नहीं मेरी आवाज हो। तुम्हारे साथ मैंने ज़िन्दगी के जो सपने बुने थे वो सब तुम्हें लौटा रही हूँ। डोंट ओरी मैं कभी तुमसे कोई हिसाब नहीं मांगूंगी, कभी कुछ जानने की कोशिश भी नहीं करूँगी। तुम जिस्म से, रूह से भले ही मुझे अलग कर दो पर मुझसे ये यादें चुराकर नहीं ले जा सकते। मैं तुम्हारी नहीं तो मैं किसी की भी नहीं। तमाम खुशियों से सजी अपनी मुख़्तसर सी प्यार की दुनिया बहुत खूबसूरत थी। शुक्रिया उन सभी लम्हों का जो तुमने मुझे दिए। श्वेत चांदनी में टंके हजारों सितारों की दुवाएँ बस तुम्हारे लिए। तुम्हें मेरे हिस्से की मुट्ठी भर खुशियां मुबारक़। हमेशा सम्हालकर रखना इन्हें। ज़िन्दगी के किसी भी मोड़ पर जरूरत के वक़्त मुझे आवाज़ देना मैं कयामत तक बस वहीं रहूँगी जहां तुमने मुझे छोड़ा। आज से हम एक-दूसरे के लिए ईशांत और हनोवर हैं। बस लक्ष्मणरेखा में तुम्हें रहना होगा क्योंकि मुझे पता है तुम बाहर निकलने की पहल कभी नहीं करोगे मेरी आखिरी सांस पर भी नहीं। मैं अपनी कसम हार जाऊँगी... तुम्हारी एक छोटी सी उफ़्फ़ भी मुझे बेचैन कर देगी, मैं जी नहीं पाऊँगी।
कोई शिकायत नहीं बस प्यार ही प्यार,
अल्लाह हाफ़िज
हनी
है ईश अगर मन में तो ये क्या है..
मैं राम कहता हूँ
तो तलवार निकालते हो
मैं अल्लाह भजता हूँ
तो पत्थर मारते हो
मैं बाइबिल पढ़ता हूँ
तो सबक सिखाते हो,
क्या मजहब की परिभाषा
बस तुम्हीं जानते हो?
अरे मजहब कोई ब्रांड नहीं
कि अच्छा या खराब हो,
राम-रहीम सत्ता के कीड़े-मकोड़े नहीं
कि पाँच साल इनको पूजो
फिर वॉक आउट कर जाएं,
ये कोई प्रश्न काल में जागी सत्ता नहीं
कि महत्वहीन हों,
इनकी आवाज हममें और तुममें हैं
ये माइक लेकर नहीं बैठते
कि सामने वाले पर प्रहार कर सकें
और इनका कोई गलियारा भी नहीं
कि वहाँ निकलकर निर्वस्त्र करें
एक-दूसरे को,
ये तो एक आत्मा हैं
हमारे और तुम्हारे अंदर बसी
......
ताकि सच के रास्ते पर चलने का
साहस जुटा सकें,
ताकि प्रलय के दिन हम
नज़रें मिला सकें अपने आप से
उस वक़्त वो ये नहीं पूछेगा
कि मेरे नाम पर कितने लोगों को
जिबह किया?
उसकी आँखों में बस एक ही सवाल होगा
कितने चेहरे उम्मीद की रोशनी में
उजले हुए??
बाहर निकलो अपनी सोच के दलदल से
नज़र उठाकर देखो
मासूमों को,
मज़लूमों को,
शोषितों को,
ज़ुल्म सहने वालों को,
ज़मींदोज़ कर दो उन सबको
जो मानव नहीं,
काले कर दो चेहरे बलात्कारियों के,
अगर साहस है
तो छीन लो
पूंजीपतियों के गुदड़ो में भरा सोना-चांदी
बना दो उसे
गरीब के मुँह का निवाला,
जड़ दो नगीना
गरीब के आँसू का
अगर कर सकते हो तो करो
नहीं तो लानत भेजो खुद पर
क्योंकि जो तुम कर रहे हो
उससे तो अच्छा है
कि कुछ न कर पाने का दंश
तुम्हें निगल जाए
और फिर उगल दे बाहर
एनाकोंडा की तरह,
तड़पने को।
मेरे बच्चे का स्कूल में पहला दिन
कोई कुछ भी कहता रहे
मग़र माँ तो बस माँ होती है,
नाराज हो कितनी या खुशी में हो
बच्चों में तो बस उसकी जान होती है,
लोगों के कैसे सवालों से टकराती है
इतनी कमजोर क्यों है दिखती
नहीं ये बता पाती है,
चाहत है हमेशा रहें
उसकी पलकों की छांव में
जरा सी दूरी से मन ये तड़प जाता है
रोती रहती है मगर खुद को
न समझा पाती है,
रखके कलेजे पे पत्थर विदा कर ही देती
दिल की ममता न एक पल को
भुला पाती है,
अभी कल की ही बात है
नन्ही सी उंगली थामी थी
बहुत भारी मन से गले से लगाकर
अच्छे-बुरे सारे सबक समझाकर
पहला अनुभव लेने को जमाने का
उन कदमों की हलचल स्कूल में उतारी थी,
जुदा होते हुए वो सिसकता रहा अंदर
'माँ यहीं बैठी रहना'
कहकर तड़पता रहा अंदर,
जाते हुए थामकर जल्लादों का हाथ
पीछे मुड़कर वो देखे
और मैंने जाने कितनी बलाएं उतारी थीं,
आंख में आँसू भरकर
दो कदम भी चलना आसान नहीं था
मैं जिसे छोड़कर जा रही थी
वो मेरा जिगर था
कोई सामान नहीं था,
मेरे लिए वो रास्ता कठिन हो चला था
कैसे तय करती उस सफर को
नहीं कुछ सूझ रहा था,
हरी घास पर वो दो घण्टे बिताने को सोचे
भाग कर सबसे पहले लिपट जाऊँ मैं
'कहाँ है मेरी माँ'
जब मेरा लाल पूछे,
यूँ तो हरी घास पर मैं चहलकदमी कर रही थी
पर उसकी याद हर पल मेरे दिल पर
कांटे की मानिंद चुभ रही थी,
घड़ी के कांटे भी ठहर से गए थे
वो रुके भी न थे
पर बढ़ ही कहाँ रहे थे,
पानी का घूँट भी अंदर नहीं सरका
कि वो अभी तक है जानता
बस मेरे हाथों का जायका,
क्या खाया होगा कुछ भी तो नहीं
मेरे यहाँ होने का भी क्या फायदा!
क्यों चाहते हो फिर भी...
तुम्हें प्यार करने की चाहत
मेरी ज़िंदा रहने की हसरत
मुक़म्मल तो कुछ भी नहीं
क्यों चाहते हो फिर भी
कड़वा ज़हर कहकर
मोहब्बतों को
हलक से उतार लूँ,
मेरे मनाने की आरजू
तुम्हारे आने की जुस्तजू
रहगुज़र तो कुछ भी नहीं
क्यों चाहते हो फिर भी
दिल को अपने
राह-ए-मोहब्बत से मोड़ लूँ,
मैं बैठी हूँ अधूरी सी
सारी बात अनमनी
गम भुलाने को कुछ नहीं
क्यों चाहते हो फिर भी
तुम्हारी याद के नाम
हर सफ़ा उधार दूँ।
Happy Birthday Master Blaster
पर आज पहली बार यहाँ लिख रही हूँ
लोग कहते थे तुम पर्याय हो क्रिकेट का
मैं कहती हूँ तुम्हीं तो क्रिकेट हो
तुम्हारे बाद मैंने मैच नहीं देखा
मेरे अंदर वो साहस नहीं था
कि तुम्हें अंतिम पारी में विदाई देती
मुझसे लगातार बोला जा रहा था
कि मैं तुम्हें जाते हुए देखूँ
क्योंकि गुजरांवाला से शुरू हुए तुम्हारे सफर में
मैं अंत से पहले तक गवाह रही,
मेरे अपने जानते थे
आखिरी पारी न देखना
मतलब मैंने क्रिकेट के रूप में तुम्हें
अपने अंदर कहीं रोककर रखा
मैंने इस सच को झुठला दिया
कि तुम अब बल्ला उठाए हुए
कभी मैदान में आते नहीं दिखोगे;
डक हो या शतक, तुम जुनून थे मेरा
पॉपिंग क्रीज़ पर तुम्हारा स्टांस लेना,
फ़ास्ट बॉल को बॉलर के ऊपर से
बाउंड्री पर विदा करना,
बाउंसर को थर्ड मैन फील्डर के ऊपर निकालना
ज़बरदस्त ऑन साइड स्ट्रोक खेलकर
ऑफ साइड उससे भी बेहतर बनाना
पंद्रह ओवर की रिस्ट्रिक्टेड फैल्डिंग का लाभ उठाना
बहुत खीझ होती थी
सिद्धू का मेडेन ओवर निकालकर
तुम्हें इंतज़ार करवाना,
स्क्वायर कट हो या फ्रंट फुट शॉट
तुम तो टूट पड़ते थे गेंद पर,
चतुराई तो जैसे रगों में भरी थी
रिवर्स स्वीप में माहिर थे तुम
पैडल स्वीप के प्रणेता बन गए,
सिक्सर के बाद भी सिंगल की भूख में
रनिंग बिटवीन द विकेट
तो बस कमाल की करी थी,
हर शॉट में तुम्हारा कोई सानी नहीं
तुम्हारे जैसा कोई हीरो नहीं
मेरे जैसी कोई दीवानी नहीं,
वर्ल्ड कप के लिए तुम्हारा डेडिकेशन
और इस सपने का पूरा होना
क्या कहूँ, सब कुछ तो दिया तुमने,
हमारा प्यार, हमारा विश्वास
सम्मान सहित लौटाया तुमने
जिस सफर भी रहो
दुवाएँ लेकर चलो
हमेशा मुस्कराते रहो विध हैप्पी फैमिली
यू, सारा, अर्जुन और प्यारी सी अंजली
IMAGE CREDIT: GOOGLE
स्वर्ग... नर्क के बीच..
कितना मुश्किल होता है
जीते जी किसी को अच्छा कहना
और मरते ही
टैग हो जाता है उसका नाम
स्वर्गीय जैसे शब्द के साथ
ये जाने बगैर
कहीं उसकी आत्मा
नर्क में वास तो नहीं कर रही,
मुझे भी कभी किसी आत्मा के साथ
नारकीय अभिव्यक्ति
या फिर नर्क में होने जैसा महसूस नहीं हुआ;
जाने क्यों इंसान
अपने पास होने वालों की वैल्यू नहीं करता
काश, कि हम अच्छा सोचें!
करें इंसान के साथ इंसान जैसा व्यवहार
परोसें उसकी थाली में
थोड़ा और आदर, थोड़ा और प्यार,
उसकी उम्मीदों पर हाँ की मुस्कान चस्पा करें,
अपनी उपस्थिति से
उसके आसपास खुशियों के गुब्बारे सजाएं,
फ़िर
फ़िक्र नहीं होगी....कि
चील-कौओं को खाना नहीं दिया पितृपक्ष में,
मरने वाले के लिए दुआ नहीं मांगी,
अकेले में पछताना न पड़े;
कि कर नहीं पाए अच्छा कुछ भी उसके साथ
स्वीकार नहीं पाए उसकी अच्छाई भरी सभा में,
स्वर्ग या नर्क के बंटवारे में पड़ने से बेहतर है,
जीते जी स्वर्ग की अनुभूति दान करना
मृत्यु पर बस नहीं पर....
तू हँसती रहे मुझ पर...
ये रोशनी
ये सवेरा
और अंधेरे में
चमकता हुआ
ये तुम्हारा चेहरा।
वो एक शाम पुरानी सी
लगने लगी है
जैसे एक कहानी सी।
वो किनारे, वो सितारे
और वो एक मैं
जो तेरी आंखों में ढूंढता था सहारे
आज सब खामोश है।
इन खामोशियों के बीच भी
तुम चुपके से आकर
कर जाती हो कई सवाल
मेरी आँखों में ढूँढती हो
उस गुनाह का पश्चात्ताप
जो मैंने कभी किया ही नहीं
और मेरा प्रेम बदहवास सा
तुम्हारी आँखों में मेरा फ़रेब ढूंढता है
ये जानते हुए भी
कि मैंने तो बस प्रेम किया है।
आ जाओ कि इक बार
मेरे दर्द को कफ़न पहना दो
ये मुर्दानगी
ये आँसुओं के सैलाब
मुझसे नहीं जिए जाते
ये पल-पल की तिश्नगी
ये घूँट-घूँट का ज़हर
मुझसे नहीं पिए जाते।
इस कदर पनाह मत देना मेरे दर्द को
कि मैं तेरा आदी हो जाऊँ
तू हँसती रहे बेपनाह मुझ पर
और मैं तेरा फरियादी हो जाऊँ।
नारीत्व मेरा अहम है
कभी सिर उठाने की कोशिश करती
तो ये कहकर रोक दिया जाता
लड़की हो तुम
चार लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे
फिर भी बेहया समाज से
मुझ अकेले को ही लड़ना पड़ता,
अब मैं बड़ी हो गयी हूँ
मेरे अंदर भी आठ लोग बोलते हैं
भेज दी उस कोमला की मृत देह
उन चार लोगों के काँधों पर
अब मैं काया विहीन
जुल्म के ख़िलाफ़ तांडव करती
एक आत्मा भर हूँ
मेरे नारीत्व को
चुनौती देने की भूल मत करना
यही तो मेरा अहम है,
गर साधारण औरत समझो मुझे
तो ये तुम्हारा वहम है।
अतीत के झरोखे से
यादों की डायरी में हर पन्ना एक अतीत बन जाता है। उनमें से कुछ तो हम अक्सर पलटते हैं और कुछ मात्र अवचेतन मन का हिस्सा बनकर रह जाते हैं। अक्सर याद करने वाले मेरे अपने प्रिय सितारों में एक नाम जो अमिट है इस सदी के हस्ताक्षर के रूप में वो है...व्यंग्यकार, डायलॉग राइटर, महान लेखक और बहुत अच्छे इंसान माननीय स्वर्गीय के. पी. सक्सेना जी का। आज चाचा जी (मैं उन्हें इसी सम्बोधन से बुलाती थी) का जन्मदिवस है, मैं उन्हें बधाई नहीं दे सकती पर हृदयतल से आभार प्रकट करती हूँ कि मुझे कुछ समय के लिए उनके सानिंध्य का अवसर मिला।
बात सितम्बर 2000 की है जब लखनऊ में एफ. एम. रेनबो का प्रसारण शुरू हुए एक महीना ही हुआ था। स्वर्गीय राजीव सक्सेना जी (इनका परिचय आगे पढ़ने को मिलेगा) और रमा अरुण त्रिवेदी जी ने चाचाजी का इंटरव्यू लिया था। उन दिनों चाचा जी लखनऊ से मुम्बई की खुशहाल उड़ानों में व्यस्त थे। आशुतोष गौरीकर की फ़िल्म 'लगान' के डायलाग लिखने का काम पूरा हो गया था और फ़िल्म प्रमोशन का सिलसिला जोरों पर था। इंटरव्यू सुनते ही मेरे मन में जोरों की इच्छा हुई बात करने की। मैंने तुरन्त पत्र लिखकर प्रेषित किया। ठीक अगले हफ्ते नीले रंग की स्याही से लिखा हुआ लाल रंग की सजावट वाला और मोती सरीखे अक्षरों में लिखा हुआ अपना नाम वाला पत्र देखकर मैंने गौरान्वित अनुभव किया। ढेर सारे आशीष के साथ उसमें एक फोन नं भी लिखा हुआ था। पत्र पढ़कर जितनी प्रसन्नता का अनुभव हुआ था बात करने के बाद उससे भी कहीं अधिक। पहली ही बार में इतनी सहजता से बात की। हर बात में बेटी का सम्बोधन, इवनिंग वॉक से तुरन्त ही लौटे थे। बोलने में हांफ रहे थे। मैंने बोला भी कि मैं बाद में बात करूँ पर जब तक मैंने खुद फोन नहीं रखा हर प्रश्न का बहुत तल्लीनता से उत्तर देते रहे। ये पहला मौका था इसके बाद तो अक्सर बात होती रहती थी। एक दिन बहुत खुश होकर बताया 'मैंने आमिर और रीना (आमिर खान की x-wife) के साथ हॉल में लगान देखी।' मुझे कुछ ईर्ष्या का अनुभव हुआ तो तपाक से बोले, 'परेशान मत हो मैं तुझे आमिर से मिलवा दूँगा। बहुत अच्छा लड़का है वो। मेरा बहुत सम्मान करता है....।'
अगर एक हफ्ते तक फोन न करूँ तो खुद ही खैरियत पूछते थे। मुझे चाचा जी की शक्ल और आवाज बहुत कुछ मेरे नानाजी जैसी लगती थी। मुझे आज भी चाचा जी के लिखे हुए व्यंग्य के धारदार चरित्र बहुत याद आते हैं। उनसे की हुई ढेर सारी बातें और लिखे हुए पत्र मेरे मानस पटल पर अंकित हैं। जब भी पत्रों को पलट कर देखती हूँ एक अपनेपन की महक से भर जाती हूँ कि सफलता के शिखर पर आरूढ़ होकर भी लेश-मात्र घमण्ड नहीं। लखनऊ से मुम्बई का सफर, विभिन्न आयोजनों में शिरकत, फ़िल्म का ऑस्कर तक का सफर तय करना जैसी व्यस्तताओं के बावजूद हर पत्र का त्वरित उत्तर देना, हर फोन कॉल का सम्मान करना ये एक बहुत बड़ी मिसाल है। हाँ कुछ समय के लिए संदीप जी की अस्वस्थता को लेकर विचलित अवश्य दिखे।
आप हमारे बीच नहीं है ये सच है पर ऐसा प्रतीत होता है कि ये किरदार आज भी सजीव है। चाचाजी आपकी लेखनी और सहृदयता को शत-शत नमन।
मेरी पहली पुस्तक
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इस प्रेम कहानी से प्रेरित मेरी कविता "प्रेमी की पत्नी के नाम" ९०,००० से अधिक हिट्स के साथ पहले पायदान पर आ गयी है. जो "ओ लड़क...
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