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तेरा-मेरा साथ

चुटकी भर सिंदूर
और मंगलसूत्र
बाँध देते हैं परिणय सूत्र में,
अग्नि के सात फेरे
देते हैं साथ चलने का साहस,
मंत्रो की वैदिक ऋचाएँ
बनती हैं एक-दूजे की आवाज़ें,
दो अजनबी मन
पास आने से पहले
लेते हैं सात वचन,
आकाश तभी तो झुकता है आशीष को
जब धरती पाँव पखारती है,
सुहागरात का प्रणय
कब समर्पण बन जाता है
अल्हड़ मन
घूँघट की ओट से रीझता है
बिना समझे ही हर मन
परिपाटी निभाता है,
विदा तो हर बार बस
बेटियाँ ही होती हैं
पर संस्कारों में
किसी और देहरी का
मान बढ़ाने को।

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