Pages

नारीत्व मेरा अहम है

कभी सिर उठाने की कोशिश करती
तो ये कहकर रोक दिया जाता
लड़की हो तुम
चार लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे
फिर भी बेहया समाज से
मुझ अकेले को ही लड़ना पड़ता,
अब मैं बड़ी हो गयी हूँ
मेरे अंदर भी आठ लोग बोलते हैं
भेज दी उस कोमला की मृत देह
उन चार लोगों के काँधों पर
अब मैं काया विहीन
जुल्म के ख़िलाफ़ तांडव करती
एक आत्मा भर हूँ
मेरे नारीत्व को
चुनौती देने की भूल मत करना
यही तो मेरा अहम है,
गर साधारण औरत समझो मुझे
तो ये तुम्हारा वहम है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें