उस रोज़ मर गयी थी माँ
लोग सांत्वना दिए जा रहे थे,
'सब ठीक हो जाएगा
मत परेशान कर ख़ुद को...'
कुछ भी ठीक नहीं हुआ
क्योंकि कुछ ठीक होने वाला नहीं था
वो देह भर गरीबी अर्जित कर
कूच जो कर गयी थी.
ऐसे ही जब मरे थे बापू
कुछ भी नहीं था तब
सांत्वना भी नहीं!
काकी, ताई, दाऊ, दद्दा...
सब इसी तरह जाते रहे.
ग़रीब के हिस्से आता ही क्या है
अलावा जिल्लत के?
अब मुझे मौत से डर नहीं लगता,
रात के अँधेरों से डर नहीं लगता,
दर्द की नग्नता से डर नहीं लगता,
मेरे भीतर का मौन कचोटता नहीं है मुझे
मैं वो जीवित शिलालेख बन चुकी हूँ
जिस पर बादल बरसकर भी नहीं बरसते,
हवा का ओज कौमार्य भर देता है
निष्प्राण देह में,
काल भृमण करता है मुझ पर
मेरी उम्र बढ़ाने को...
To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
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जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
20/10/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
देर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
हटाएंबहुत आभार आपका 🙏
मर्मस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभार मीना जी!
हटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत आभार!
हटाएंYou have written beautifully. Keep writing.
जवाब देंहटाएंThanks much!
हटाएंअत्यंत ही भावपूर्ण रचना । मन को भा गई ।
जवाब देंहटाएंदर्द से खूगर हुआ इंसा तो मिट जाता है दर्द....
जवाब देंहटाएंबहुत ही हृदयस्पर्शी रचना।
बहुत ख़ूब.... शुक्रिया!
हटाएंदर्द से खूगर हुआ इंसा तो मिट जाता है दर्द....
जवाब देंहटाएंबहुत ही हृदयस्पर्शी रचना।