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बेटी: किलकारी से महावर तक



क्षितिज पर ललछौं आभा से भी पहले पसरी

मेरे जीवन पर सलिल हृदय रक्ताभ ललाट

स्वेद को मेरी पीड़ा को किलकारियों में भुलाती

बूँद-बूँद समेटती रही मेरे मन का उचाट

वर्तिका, तितली, परागकण तो कभी छुई मुई

सदुपाय, आलम्बन तो कभी स्वत्त्व बन मिली

मैं अरण्य, वन, कानन घूमा वो तोतली मिश्री की डली

कितने दिन के मैं भँवर चला उसे देख मेरी हर शाम ढ़ली

उसका प्रदीप्य और वो मुख मशाल

बना कभी मेरा गांडीव तो कभी शंखनाद

उसके चित्रों में मिलते सुपरमैन मूँछों वाले

उसके कल्पनाओं की सिम्फ़नी दिखाती मेरे रुप मतवाले

उसकी तरुणाई की छम छम का असर बढ़ा

मेरे कन्धे पर सर रख, गोदी के झूले में

सोने वाली का हाथ, मुझे अपने कंधे पर मिला

माँ, दादी माँ, नानी माँ तो कभी परनानी

मेरी अल्फ़ा, बीटा और अनसुलझी प्रमेय की दीवानी


ठुनक जाती है जब भी कहता हूँ, कोई और ठौर है तेरा

बिठाना है तुझे नाव सपनों जिस संग, सिरमौर है तेरा

छाप तेरे महावर की होगी, लगे जब अंग प्रियवर

खोज नहीं पाऊँ मैं भी, नाम मुझ सा अनल अक्षर

कैसे कहूँ बेटी हृदय में हूक सी समा जाती है

आँगन घर का हो या मन का बस तू ही सुहाती है.

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-07-2021को चर्चा – 4,133 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. नक जाती है जब भी कहता हूँ, कोई और ठौर है तेरा

    बिठाना है तुझे नाव सपनों जिस संग, सिरमौर है तेरा

    छाप तेरे महावर की होगी, लगे जब अंग प्रियवर

    खोज नहीं पाऊँ मैं भी, नाम मुझ सा अनल अक्षर

    कैसे कहूँ बेटी हृदय में हूक सी समा जाती है

    आँगन घर का हो या मन का बस तू ही सुहाती है.
    माँ के बेटी के प्रति मार्मिक उदगार | बेटी को दूर करने की कल्पना ही बहुत डरावनी है |मेरी ही मन के भाव लिख दिए आपने अभिलाषा जी | सस्नेह शुभकामनाएं|

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    1. प्रिय रेणु जी, मन से जुड़ने के लिए स्नेहिल आभार! ❤️

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