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जाने क्यों!

 



जब सार्थक हो मौन

तो माप आता है

आकाश गंगा से लेकर

पृथ्वी की बूँदों का घनत्व,

समझ आता है

दिव्य भाव-भंगिमाएँ,

तुला पर रख गुज़रता है

अकाट्य तर्क

....

अगर असफल होता है

तो बस

प्रेम का उतार चढ़ाव पढ़ने में.

जाने क्यों नहीं पढ़ पाता

प्रेमिका का निःछल मन!

14 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०७-०७-२०२१) को
    'तुम आयीं' (चर्चा अंक- ४११८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. हृदय की पीड़ा को सुन्दर शब्द दिये! सुन्दर भाव!

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  3. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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  4. बहुत ही अच्छी और गहन पंक्तियां।

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  5. बहुत सुंदर!मन में पीड़ा के एहसास समेटे भाव पूर्ण सृजन।

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