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तुम्हीं मेरे गुलज़ार हो!

जब मख़मल सी सुर्खियाँ

अम्ल के पार होती हैं

जब चाहत कलम में

तार तार होती है...

जब सरगोशियाँ न हों हवा में

और दिन पलट जाये

जब लफ़्ज़ का वरक़ पर

मरासिम ठहर जाये

जब तू न हो और मेरा वक़्त

बस तेरे साथ गुज़रे

जब तेरी आँखों में सब पढ़ें

मेरी ग़ज़ल के मिसरे

तब तो कहने देना तुम्हीं मेरे गुलज़ार हो

मेरी ज़िंदगी के चारों दिनों का एतबार हो!

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-08-2021को चर्चा – 4,161 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 अगस्त 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. मखमली अहसास । बहुत ही बढ़िया ।

    जवाब देंहटाएं
  4. जब लफ़्ज़ का वरक़ पर

    मरासिम ठहर जाये

    जब तू न हो और मेरा वक़्त

    बस तेरे साथ गुज़रे।
    बहुत सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं