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प्रेम में जोगिया

 न मिले सात सुर

न सप्तपदी हुई

साँस प्रेम की

हर साँस ठहरी रही


सुमिरन करुँ

प्रेम में मैं प्रवासी

मन को पाषाण

कर देह सन्यासी


जोगिया मुझसे मिलना

जब मिले देह काशी

घाट मणिकर्णिका

क्लांत पथ कोस चौरासी

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 09 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. गहरे भावों से ओतप्रोत सुंदर रचना!

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