कोई पुरुष जब रोता है

 ओ स्त्री!

जब तुम रोते हुए

किसी पुरुष को देखना

तो बिना किसी

छल और दुर्भावना के

उसे अपनी छाती में

भींच लेना

और उड़ेल देना उस पर

वो सारा स्नेह

जो तुम अपने कोख़ के

जाये पर लुटाती...

कोई पुरुष जब रोता है

तो धरती की छाती

दरकती है

तुम्हें बचाना होगा स्त्री! दरार को.

पुरुष, पुरुष ही नहीं ईश भी है

वो ही न हो तो तुम स्त्री कैसे बनो?

मेरी पहली पुस्तक

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