माँ ने कृतज्ञ होना सिखाया
और यह भी सिखाया कि
नदी, वृक्ष, प्रकृति की तरह बनो
देना सीखो,
पशुओं की तरह बनो
अनुगामी रहो
अब उलझन में हूँ मैं
क्या इंसान नहीं बन सकती!
एक और सुझाव मिला
गीता का सार समझो,
ईश्वर कहता है
….
कदाचित कुछ नहीं कहता ईश्वर
अलावा इसके कि
कर्म प्रधान रहे
निर्णय स्वयं से हो और
संतुलन बना रहे