विलंब

 क्या चाहिए तुम्हें?


विलंब


किस बात का?


निशा के पारण का


क्यों?


नदी के उस पार कोई मेरी प्रतीक्षा में है। प्रभात फेरी के समय नौका का आगमन है


तुम जाना चाहती हो?


हाँ, पर नाव को पानी से बाँधना होगा


तो तट से क्यों बाँधी?


जब जान गये तो प्रश्न क्यों?


तुम्हारा प्रतिप्रश्न सुनने के लिए 


हिश्श, कहीं ऐसे होता


फिर कैसे होता


ऐसी बातें तो वो करते जो प्रेम करते किसी से


यही समझ लो


अच्छा तो यहाँ क्या कर रहे? तुम्हें तो अपनी प्रेमिका के पास होना चाहिए। धवल चाँदनी, मंद पवन, शीतल जल...ये सब तुम्हारा मन आलोड़ित नहीं कर रहे प्रियसी की मुस्कान के लिए?


कर रहे थे तभी तो यहाँ आया


और यहाँ तो मैंने रोक लिया


वही तो


अब जा सकते हो। किसी को तो उसका प्रेम मिले!


नहीं, मुझे तुम्हारी बातें आनन्दित कर रहीं। ऐसा लग रहा मानो भोर की बेला तक मुझे प्रेम हो जायेगा


भोर तो होने वाली है


उसमें विलंब है। भूल गयीं, अभी तो तुमने माँगा


अच्छा हाँ...


धवल चाँदनी, मंद पवन, शीतल जल...ये सब तुम्हारा मन आलोड़ित नहीं कर रहे प्रिय की मुस्कान के लिए?


कर रहे हैं न...तभी तो नाव तट से बाँध दी। जो पास है वही साथ है


प्रिये तुम्हारी आँखों में स्वयं को देख पा रहा हूँ मैं


तुम्हारा स्पर्श मेरे भीतर उन्माद की कल-कल उत्पन्न कर रहा


प्रिये, मुझे क्षमा कर दो। मैं कभी तुमसे अपना प्रेम प्रकट नहीं कर पाया


मुझे भी क्षमा कर दो, यह जानते हुए भी कि मैं समुद्री डाकू से मिलने जा रही, घर से निकल चुकी थी। तुम्हें मेरे पीछे भेजने का पिताजी का निर्णय एकदम सही था


एक रात को ये आज की रात ठहर क्यों नहीं जाती!

स्मृति

 •स्मृति क्या है?


°बीते हुए कल के शोर की प्रतिध्वनि


•शोर क्यों स्वर क्यों नहीं?


°जिस प्रकार हमारी सूक्ष्म देह होती है ठीक उसी प्रकार सूक्ष्म कान भी। स्वर उनसे टकराये भी तो हम विचलित नहीं होते और उनके बारे में बार-बार नहीं सोचते


•हमारी स्मृति में कुछ बातें ही क्यों होती हैं, सब क्यों नहीं?


°जिन बातों के लिए हमारा मन अति संवेदनशील होता है, वही बातें हमारे मन में अनवरत चलती रहती हैं


जीवन का सत्य• भाग (1)

हम मानने में
विश्वास रखते हैं
सच मानना हो,
किसी रिश्ते को मानना हो
अथवा गणित का एक्स
हमने माँ के गर्भ में
स्वयं को नहीं देखा
पर सभी ने जिन्हें माँ कहा
हमने माना
पिता ने हमें
जन्मते नहीं देखा
परिचारिका ने मुझे
उनकी गोद में डालते हुए
मुँह मीठा कराने को कहा
पिता जी ने मान लिया;
इस मानने में
मन ने सदैव
प्रश्न नहीं प्रेम किया,
संदेह नहीं
विश्वास किया

क्रमशः

चंद क्षणिकाएँ

 



•प्रेम

ऐश्वर्य के पाँव में पड़े

छालों का नाम है


•नदियाँ धरा का सौंदर्य हैं

और पड़ाड़ो तक पहुँचने का

सुगम मार्ग


•दर्द के मार्ग पर

चलते हुए

प्रिय का प्राकट्य होता है


•कोई तो है

जो इस सृष्टि पर

दृष्टि रखे है


•प्रेम में

तुम्हें याद करना ही

मेरे प्रेम की अधिकतम सामर्थ्य है


आख़िरी से पहले की ख्वाहिशें

"मैं तुमसे बात नहीं कर पाऊँगा, हाँ ये जानता हूँ तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो और शायद यही वजह भी है"

"ठीक है तुम शब्दों में लिखते रहना, मैं आँखों से चूम लिया करुँगी, जीती रहूँगी अपने आप में तुम्हारी होकर"

"मुझे अफसोस है कि मैं कभी तुम्हारे सामने भी न आ पाऊँगा"

"मैं अपने आज़ाद ख़यालों में पा लिया करुँगी तुम्हारी झलक"

"कब तक बनाती रहोगी उम्मीद के मक़बरे?"

"तुम्हारे ख़यालों में तर साँसों के चलने तक"

"फिर?"

"फिर थोड़ी सी मुझे ज़मींदोज कर देना वहाँ, जहाँ चूमते हैं ये पाँव अलसुबह की ओस. महसूस लूँगी हर रोज तुम्हारी छुअन, थोड़ी सी मुझे जला देना उस पेड़ की लकड़ियों संग जिसे सींचा है तुम्हारे बचपन ने, गले लगाया है तुम्हारे यौवन ने, अपने आँसुओं से भिगोयी हैं जिसकी पत्तियाँ तुमने, मेरी हड्डियों से बनाना काला टीका… जो लगाया जाये प्यार भरी पेशानी पर. बाक़ी बची मुझ से बनाना एक नजरबट्टू..जहाँ भी रहो तुम मेरी आज़ाद रुह के साथ वहाँ रखना.
पूरी कर देना मेरी आख़िरी से पहले की ख्वाहिशें"

"----?----"

"मेरी आखिरी ख्वाहिश तो बस 'तुम' है"

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php