लांछन

"सन्नो..." ननद की आवाज सुनते ही सन्नो ने पलटकर देखा। खीझ भरा गुस्सा देखकर सहम गयी। वो कुछ बोल पाती इससे पहले ही उसकी बात काट दी गयी, "देख अब तक बहुत सह लिया तुझे। अब तो नरेश भी नहीं रहा, क्या करेंगे हम लोग तेरा। वैसे भी हमारे घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं कहीं इन्हें कुछ हो गया तो। अब तेरा यहाँ से जाना ही ठीक है।"
सन्नो को कुछ बोलने का मौका नहीं दिया गया। ननद और जेठानी उसे आंगन से खीचते हुए बाहर अहाते तक ले गयीं, लगभग धकेलते हुए दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। सन्नो ने सास की तरफ़ ज्यों ही पलट कर देखा उसने ऐसे मुँह फेर लिया जैसे पहचानती ही नहीं।
अब वो अहाते के दरवाजे पर गुमसुम उस दहलीज को निहार रही थी जहाँ 2 साल पहले ब्याह कर लायी गयी थी। नरेश दिल्ली के एक कारखाने में काम करता था और वहीं एक चॉल में रहता था। उसे अपने पति के चाल-चलन पर शुरू से ही संदेह था पर कभी घर की इज्जत और कभी उसके औरत होने की मजबूरी उसे चुप रखती थी। माँ-बाप बूढ़े हो चले थे, भाइयों ने कोई सुध ही नहीं ली।
पिछले महीने नरेश की तबियत अचानक बिगड़ गयी। दिल्ली से आने पर पता चला कि वो एड्स के शिकंजे में है। उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी। तब सास, जेठानी और ननद ने पैरों पर सर रख दिया था कि घर की इज्जत का सवाल है बात बाहर न जाये। सन्नो ने पूरे एक महीने तक पति की जी-जान से सेवा की, अंततः वो चल बसा। अंतिम समय में सन्नो को उसकी आँखों में पश्चात्ताप दिखा था पर तब जब जीवन में कोई झनकार नहीं बची थी।
आज सन्नो की सिसकी नहीं रुक रही कि कौन उसे निर्दोष मानेगा। नरेश के जीते जी वो चुप रही अब किससे कहेगी कि वो बदचलन नहीं है।
'हे प्रभु, अगर कलयुग में धरती नहीं फट सकती समाने को तो सीता मइया जैसा लांछन क्यों लगवाते हो???' सन्नो की आत्मा चीख रही थी।

एक मीरा और दूसरी भी मीरा

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अपनी मीरा श्याम दीवानी
और ये है नाम दीवानी,
12वें दक्षिण-एशियाई खेल में
अपनी उम्र से बड़ा वज़न उठा लिया
अमेरिका की सरजमीं पर
हम सबको चकित किया;
ये है मीराबाई चानू
आप सब भी जानो
48 किलो भार उठाया
स्वर्ण-पदक पाया
बेलन चलाती महिला
डम्बल भी उठाती है,
अब किस बराबरी की बात करते हो 
सबको बताती है:
मणिपुर की सरजमीं को नमन
ऊंचा करो यूँ ही परचम
देश का हरदम।

एक रिश्ते की मौत

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एक रिश्ता 

जो तारीख से उपजा 
कैलेंडर पर बड़ा हुआ 
समय के साथ उम्रदराज़ हुआ.

एक रिश्ता 

जो मन की गहराइयों में उमगा 
सपनों में जवान हुआ 
उम्मीदों में पनपता रहा.

एक रिश्ता          

जिसमे थी समय की बंदिश 
दूरियों की परवाह 
और ही भविष्य की फिकर.

एक रिश्ता 

जो बस प्यार में बना था 
प्यार में पला था 
और प्यार के लिए था.

एक रिश्ता 

जिसमे छाँव थी तुम्हारी 
और धूप मेरी
सुख थे तुम्हारे 
दुःख मेरे 
वर्तमान था तुम्हारा 
और भविष्य मेरा


एक रिश्ता 

जिसमे जीना तो मुझे था 
तुम्हे तो बस टहलना था. 
.........................
मार दिया तुमने मुझे 
मेरे अंदर ही कहीं,
रिश्ता जब मरता है 
कांधा नहीं दिया जाता 
अर्थी नहीं निकलती है,
ही होता है राम-नाम सत्य 
वहां तो बस पिघलती है 
संवेदनाओं की चाशनी 
........................
मैं भोर के तारे सदृश 
आकाश में टक गयी 
ये देखने को 
...............
क्या होगा इस रिश्ते का पुनर्जन्म???

क्या संभव है?

आओ एक कहानी लिखें 
जिसमें स्त्री पुरुष हो 

और 
पुरुष … स्त्री,
क्या संभव है 
एक पुरुष के लिए 
स्त्री बनना?
आज सोचा 

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तो समझ आया 
स्त्री बहुत महान है,
वो हर साँचे में ढल जाती है,
हर किरदार में 
समा जाती है
और पुरुष 
वो तो स्त्री से जन्मा,
समा लेती है                  
स्त्री 
उसे अपने अंदर 
तन से,
मन से,
अर्पण से,
फिर भी 
पुरुष दम्भी 
और 
स्त्री कुंठित क्यों???



फीलिंग्स का गूगल सर्च

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वो सहमा-सहमा सा था मेरे भीतर 

और मैं इठलाई सी
यूँ लगे कि
सारे जहां की
रौनकें मुझपे छायी सी,
एक ऊर्जा सी थी
मेरे अंदर दिव्यता समाने की
मैं माँ बनने जा रही
ये तो सच ही था
पर मैं क्या खोने जा रही
ये अलग सा प्रश्न था अंदर,
जब मैं बहुत प्रेम में थी
मेरे अंदर का मैं
खो दिया था मैंने,
आज जब प्रेम का अंकुर 
प्रस्फुटित हुआ
मैं अपने मन का बच्चा
खोने जा रही
क्योंकि अब तुम
खसखस के बीज वाले आकार से
तिल के बीज वाले आकार में
रूपांतरित हो चुके हो,
तुम्हारे चेहरे के कुछ हिस्से उभरे होंगे
65 की रफ्तार से धड़कने वाले
दिल की नली भी,
तंत्रिका-नली भी तो बन गयी होगी;
पाचन-तंत्र और संवेदी-तन्त्र
भी बनने लगे होंगे,
उपास्थि आ गयी होगी,
बड़ा सा दिखता है सर अभी,
बहुत से सवाल आते हैं मन में,
सामान्य हो जाती हूँ 
जब इनका तसल्ली भरा हाथ
मेरी हथेली को गर्माहट देता है;
गूगल बताता है मुझे
तुम्हारी लम्बाई इंचों में
और वज़न ग्राम में,
पहले सेमेस्टर के आखिर में
तुम अपने पूरे वजूद में हो,
तुम्हारी मुट्ठी खुलती है, बन्द होती है
मगर गर्भ की दीवारों पर 
नाखूनों के निशान नहीं आते
मेरा समूचा अस्तित्व सिमट गया तुझमें
और तुम मेरे अहसास में ज़र्रा-ज़र्रा।

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php