To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
जिज्ञासा के बाद शून्यता!
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कहाँ होती है
जिज्ञासा के बाद शून्यता
वो तो अनुभवों के
असीम द्वार खोलती है,
हर बचपन एक बार
ओले खाने की
लालसा रखता है
बड़प्पन हमें
'कैसे बनते हैं ओले'
इस प्रश्न पर घुमाता है;
बढ़ता ही रहता है
जिज्ञासा का आकार,
शून्यता तो
जिज्ञासा के बाद
कुछ खोने की
अवस्था में आती है
कि
हर बचपन की आंखों में
एक सपना पलता है
जब वो बड़ा होगा
माँ-पापा को
महलों की नवाज़िशें देगा
मग़र ए दिल
जिज्ञासा युवा पत्नी की
आंखों में शून्य हो जाती है
और बुढ़ापा
वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर
भंडारे की पूड़ियों में दम तोड़ता है।
मत छोड़ मुझे ज़िंदा!!!
दर्द का दशानन जीत गया
उम्मीद की सिंड्रेला हार गई
'निचोड़ लो रक्त इन स्तनों से
लहू-लुहान कर दो छाती,
घुसा दो योनि-मार्ग में
जो कुछ भी चाहो'
मेरी आत्मा चीखी थी
फफोलों से दुख रहा था
मेरा जिस्म
जब वो सारे वहशी
बारी-बारी से
अपनी गंधेली साँसे भर रहे थे
मेरी नासिका में,
उन कुत्तों का बदन
मसल रहा था
मेरी छाती के उभारों को,
बारी-बारी से चढ़ रहे थे
मेरे ऊपर
मैं छटपटा रही थी दर्द में
और वो हवस की भूख में
कसमसा रहे थे,
भयंकर दर्द कि
मेरी साँसे घुट रही थी
दोनों हाथों से
मेरी गर्दन को भींचकर
मेरे मुंह पर
चाट रहे थे
पूरे चेहरे पर
दांतो के निशान आ गए थे,
एक हाथ से
नंगा कर दिया था
योनि में लगातार
प्रहार हो रहे थे
कुछ अंदर गया पहली बार
मेरी चिंघाड़ आस-पास तक
गूंज गयी थी,
फिर एक दो तीन चार
...........
कितने ही नामर्द, नपुंसक
कुत्तों का लिंग
अंदर-बाहर होता रहा,
वो आह-आह कर
सिसकी भरते रहे,
मैं बेजान-बेजुबान
पत्थर सी हो चुकी थी,
मेरी योनि
अनवरत रिस रही थी
मैं नहीं जानती
वो द्रव्य सफेद, लाल था
या फिर पीला,
मुझे तो मेरे पास
संवेदना का ज़र्द, सफेद,
असंवेदनशील मृत चेहरा
दिख रहा था बस;
शायद मेरा रस झड़ चुका था,
तभी तो
वो मुझे
ज़िंदा लाश बनाकर छोड़ गए थे,
सांस तो अब भी आती है
मगर शर्म अब नहीं आती;
कान्हा की बाँसुरी बने अब सुदर्शन!
आस्था गंगा-यमुना में
हर रोज डुबकी लगाती है
मगर दिल का मैल कलयुग सा
सदियों से जमा रहता है;
भगवा पहन राम-नाम जपके
लोग महलों से पत्थरों में
दिखाई देते हैं,
पर रामलला अपना
त्रिपाल में ही खुश रहता है;
हे प्रभु!
अब तो मुस्कराओ
रोंग से राइट नंबर पे आओ
हर रोज डुबकी लगाती है
मगर दिल का मैल कलयुग सा
सदियों से जमा रहता है;
भगवा पहन राम-नाम जपके
लोग महलों से पत्थरों में
दिखाई देते हैं,
पर रामलला अपना
त्रिपाल में ही खुश रहता है;
हे प्रभु!
अब तो मुस्कराओ
रोंग से राइट नंबर पे आओ
माखन चुराओ
लीला दिखाओ
कलयुग मिटाओ
दाल-रोटी खाओ
हर सांस पर लगा
जी एस टी मिटाओ
भक्त के गुण गाओ
आशा-विश्वास का
परिणय कराओ;
दहन हो रही
गर्भ में बेटियां
और बेटे
दहेज की खातिर
हवन हो रहे;
डिग्री रखने वाले
जमीन पर हैं
अनपढ़ सितारे
गगन हो रहे;
कहीं कफ़न की खातिर
लग रहीं
बोलियां रिश्तों की
और कहीं हवस का जना
कुत्तों से नुच रहा;
अच्छे-बुरे को तोलने की
कौन सी तुला है
चन्द सिक्कों पे
स्वाभिमान ही बिका जा रहा;
लोग सत्ता बनाते हैं
बनाते ही रहेंगे,
वादों के काशी-मदीना
जाते ही रहेंगे;
अर्जुन का गांडीव अब धरा को बचाये
कृष्ण को बाँसुरी नहीं सुदर्शन दिखाए।
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