प्रेम: कल्पनीय अमरबेल...प्रथम अंक



हमारे वैवाहिक रिश्ते को अभी चन्द महीने हुए थे। अभिलाषाएं पालने में ही थी पर आवश्यकताओं ने पाँव पसारने शुरू कर दिए थे।  वो बेटे न होकर पति जो बन गए थे और मैं भी बेटी कहाँ रह गयी थी। जो एक अच्छा सा सामंजस्य चला आ रहा था सात बरसों के बेनाम जीवन में, रिश्ते को नाम मिलते ही बचकाना सा लगने लगा। प्रेम को मंजिल तक लाने में जो सफर तय किया आज वो उम्र का कच्चापन लग रहा। जाने क्यों आज ऐसा लग रहा कि प्रेम एक अमरबेल है बस देखने में सुंदर। अगर स्थिरता न हो तो ये किसके परितः अपनी साँसे जियेगा। कल हम प्रेम में थे, लव-बर्डस की उपमा दी जाती थी पर आज मैं समय हूँ और ये पहिया......

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क्रमश:
मित्रों, अगर आपको मेरे बारे में आगे जानने की इच्छा है तो कृपया comment box में लिखें।
कहानी जारी रहेगी।

समय तेरा जवाब क्या.....!

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आते हुए उसने खटकाया भी नहीं
जैसे दबे पाँव मगर
निडर चला आया हो कोई,
एक सवाल था उसकी आँखों में
कि मैं उसके आने के जश्न में
शामिल क्यों नहीं औरों की तरह,
कैसे बताऊँ उसे 
जब स्वागत और प्रतिकार में
कोई फर्क ही नहीं
कौन रुकने वाला है मेरे रोकने से
न घड़ी की सुइयाँ, 
न ही समय में लिप्त दर्द,
इस रूह कँपाती सर्दी में
नए वर्ष का जश्न
एक सुखन दे गया,
आज वो भी खुले आसमान के नीचे
बिना कपड़ों के आवारा थिरक रहे हैं,
जिनकी तिजोरियाँ बोझ से दरक रही हैं,
कल सुबह यहीं से बच्चे
बीनकर ले जाएंगे
खाली ब्रांडेड बोतलें;
वो आ गया है अपना समय पूरा करने
उसे भी तो देखना है
कितनी हाँड़ी बिना भात की हैं,
कितने नन्हे भूखे सोये,
कितनी माँओ ने पानी डालकर
दाल दोगुनी कर दी,
कितने लाल रेस्टोरेंट के नाम पर
पानी में दाल का बिल भरते हैं:
उसे अपना चक्र पूरा करके
चले जाना है,
क्या फर्क पड़ता उसे विषमताओं से,
उसमें संवेदना की बूंद तक नहीं
वो तो है हर रोज़
कैलेंडर पर बदलती एक नयी तारीख।

अब न होगा....ये तेरा घर....ये मेरा घर

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ये दुनिया बदलती ही रहती है
हर पल
हमारी पृथ्वी,
इसे गोल-गोल घूमते उपग्रह
और वो भी
जिसके परितः हम घूमते हैं
पृथ्वी के संग;
अगर सृष्टि परिवर्तित होती है
तो हम भी कुछ कम नहीं,
हमारे वैज्ञानिक
मल्टी-प्लेनेट प्रजाति में
भविष्य देख रहे हैं,
फैलकन 9 इंजन 
मंगल ग्रह पर प्रोपल्सिव लैंडिंग तो
16 बार कर चुका है,
अब ऑक्सीजन संग मानव की बारी है
जिसकी खातिर 1200 टन
ऑक्सीजन भंडारण क्षमता की
डीप क्रायो लिक्विड ऑक्सीजन टैंक
मैदान में उतारी है,
अब वहाँ ले जाने को 
नया शिप बनाया जाएगा,
2022 में मंगल पहुंचाने का मिशन लाया जाएगा
उपरोक्त मेरे नहीं
28 सितम्बर 2017, एडिलेड में
इंजीनयर, अविष्कारक 
'इलोन मस्क' द्वारा व्यक्त उदगार हैं,
अब तो बस हर दिल अजीज़
ये तेरा ग्रह, ये मेरा ग्रह गुनगुनाइए
कदमों से भले ही दूर रहिये
पर दिलों के करीब आइये।

Aao ki thoda rafu kar lein!


seewan udhad gayi hai rishton ki
aao ki thoda rafu karte chalein!!

जाने क्यों मेरा मन आज बंजारा हो गया!


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भटकता फिर रहा है बेसुध सा
राही है किसी पथ का न रहबर
फ़िज़ा-फ़िज़ा में कुछ तलाशे है
ढूंढे हवा-हवा आशियाना
नील-गगन में इंद्रधनुष की छत के तले
हवाओं के सहन में रहना चाहे
किसी डोर पे ये ठहरे न कहीं
सरे-शाम से ही आवारा हो गया
जाने क्यों मेरा मन आज बंजारा हो गया
अठखेलियां करे हिरनियों सी
इठलाए नदी की रवानियों में
टहलता रहे बादलों, तितलियों सा
है तो मेरा, मुझसे भी भागा फिरे
डोर रह गयी मेरे हाथ में
छोड़कर मेरा मधुमास
ऐसी लगी इन निगाहों की प्यास
कि थम गयी तुमपे तलाश
अपना तो हुआ न कभी, तुम्हारा हो गया।

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php