To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
चचा लखनऊ उवाच 1
दो शेर
उनके तन्हा होने का उन्हें सबब क्या पता
रिश्ते तो मर गए मगर दफनाए नहीं गए।
दिल की बंजर जमीं थी पर मोहब्बतों के फूल खिल तो गए,
अहसास की नमी हवा हो गयी, वहाँ कैक्टस के गुलिस्तां मिले।
प्रेरणापुंज कल्पना को नमन
एंटीक पीस हूँ मैं....
कभी फ़िकर नहीं करती
कि कैसी दिखती हूँ मैं
मुझे परवाह है तो इतनी
कि तुम कैसे देखते हो मुझे
मैं
रंग और नूर की
बारात का हिस्सा तो नहीं हूँ
मग़र
कोई अधूरा किस्सा भी नहीं।
मैं
नवाबों के शहर की
शान तो नहीं
पर गुमनाम भी नहीं हूँ,
मैं
मूक ही सही
वाचाल तो शब्द हैं मेरे,
मुझमें
रंगीनियां कब हैं जमाने की
सादगी में लिपटी
श्वेत-श्याम तस्वीर हूँ मैं,
सूरत में
नहीं हूँ
मैं तो
सीरत में हूँ,
खुद के लिए
कब थी मैं
मग़र
सभी की
जरूरत में हूँ,
बादशाहत के किस्सों से
बाहर हूँ
बस
अपने मन की
मुमताज़ हूँ,
जो पढ़ी जा सके
वो
किताब नहीं हूँ
फ़क़त
दास्तां हूँ
अहसासों की
सबके दिलों की
आवाज़ हूँ मैं,
ज़र्रा-ज़र्रा
जीती हूँ
दर्द में
मरती हूँ
हर पल,
हवाओं सी
बहती हूँ
झरनों सी
करती हूँ
कल-कल,
जब
प्रेम की
फुहारें बरसती हैं
खिल जाती हूँ
बनकर
इंद्रधनुष,
मार्तंड सा
तपती हूँ
बर्फ सा पिघलकर
जब
रुदन करती हूँ
आकाश
नाचता है
धरती के
स्पंदन पर।
दुःख में सत्य चीखता है...
दुःख रात का वो पहर नहीं जहाँ नितांत अंधेरा है
दुःख तो वो पल है जब आपके कदम ठहर जाएं
दुःख वो कहर नहीं जहाँ उम्मीदें टूटती हैं
दुःख तो वो जहर है जिसे पीकर आप उम्मीद करना छोड़ दें
दुःख बियाबान जंगल नहीं
दुःख तो वो छाँव है जहाँ आप दिशा भटक जाएं
दुःख वो नहीं जो किसी के चले जाने पर हो
दुःख तो किसी के साथ होते हुए भी न अपनाने पर है
दुःख वो नहीं जो हताश कर दे
दुःख तो वो है जो आशा को निराश कर दे
दुःख वो नहीं जब अन्न न मिले
दुःख तो वो है कि आपके पास अन्न हो और सेवन न कर सकें
दुःख वो नहीं जब आपके पाँव में जूते न हो
दुःख तो वो है कि जूते पहनने को पाँव न हो।
प्रिय को पत्र
तेरा-मेरा साथ
चुटकी भर सिंदूर
और मंगलसूत्र
बाँध देते हैं परिणय सूत्र में,
अग्नि के सात फेरे
देते हैं साथ चलने का साहस,
मंत्रो की वैदिक ऋचाएँ
बनती हैं एक-दूजे की आवाज़ें,
दो अजनबी मन
पास आने से पहले
लेते हैं सात वचन,
आकाश तभी तो झुकता है आशीष को
जब धरती पाँव पखारती है,
सुहागरात का प्रणय
कब समर्पण बन जाता है
अल्हड़ मन
घूँघट की ओट से रीझता है
बिना समझे ही हर मन
परिपाटी निभाता है,
विदा तो हर बार बस
बेटियाँ ही होती हैं
पर संस्कारों में
किसी और देहरी का
मान बढ़ाने को।
वुड बी मदर हूँ मैं....
फिर मिलते हैं...
चलो ज़िन्दगी से दरख्वास्त की जाए
जगते रहने की इजाज़त दे मुक़म्मल नींद से पहले।
शुभ रात्रि
बराबरी का समीकरण
हर वर्ष
'महिला दिवस'
मनाया जाता है
कहीं ये सोचकर
पुरुष अपनी कॉलर
ऊंची तो नहीं करते
कि साल के 364 दिन
तो उनके ही हैं,
आगे से एक दिन
'पुरुष दिवस'
भी होना चाहिए
ताकि
बराबरी का समीकरण
बना रहे।
मेरी पहली पुस्तक
http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php
-
इस प्रेम कहानी से प्रेरित मेरी कविता "प्रेमी की पत्नी के नाम" ९०,००० से अधिक हिट्स के साथ पहले पायदान पर आ गयी है. जो "ओ लड़क...
-
•जन्म क्या है “ब्राँड न्यू एप का लाँच” •बचपन क्या है टिक टाक वीडियो •बुढ़ापा क्या है "पुराने एप का नया लोगो” •कर्म क्या हैं “ट्रैश” •मृ...