तुम्हारी नर्म-गर्म हथेलियों के बीच खिला पुष्प
और भी खिल जाता है, जब
विटामिन ई से भरपूर चेहरे वाली तुम्हारी स्मित
इसे अपलक निहारती है
तुम्हारा कहीं भी खिलखिलाकर हँसना
मेरे आसपास आभासित तुम्हारे हर शब्द को
तुम्हारी गंध दे जाता है... महका जाता है
कण कण में तुम्हारा होना.
वही तो करते हो तुम जो अब तक करते आये
बना देते हो चंदन अपने शब्दों को
यही है मेरी औषधि, ये शब्द
डाल देते हैं मेरे चिन्मय मन पर डाह की फूँक
शाँत करने को मेरे मन के सारे भाव...
तत्क्षण मेरा मन वात्सल्य में डूब जाता है
झूम उठती है मेरे मन की मेदिनी
तुम्हारा पग चूमने को...