•तुम प्रिय
तुम प्रियता
सांसारिक निजता
हिय दृष्टा हो
तुम अंतर्दिष्ट सखा हो
तुम अतीत का
नाम जप
तुम स्नेह का
प्रतीक्षित तप
मैं हूँ सूर तुम दृष्टा हो
तुम फाग
तुम ही फाग राग
अनछुआ रंग
कुसुमित पराग
मैं श्याम कमल तुम केसरिया हो
To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
तुम प्रियता
सांसारिक निजता
हिय दृष्टा हो
तुम अंतर्दिष्ट सखा हो
तुम अतीत का
नाम जप
तुम स्नेह का
प्रतीक्षित तप
मैं हूँ सूर तुम दृष्टा हो
तुम फाग
तुम ही फाग राग
अनछुआ रंग
कुसुमित पराग
मैं श्याम कमल तुम केसरिया हो
•कविता
मन की चारदीवारी से निकला
इमोशनल कंटेंट
•कविता
एक परिभाषा
‘टेम्पोरेरी’ की
•कविता
सरेंडर है प्रेम का
•कविता
लिखवाती है मुझसे
ख़ुद को
•कविता
रुचती है तो
चुभती भी है
•सबसे अच्छी वह कविता लिखी
जो अब तक लिखी ही नहीं गयी
•मेरी कविताएँ
तुम्हारे लिए लिखी गयी
मेरी चिट्ठियाँ हैं
पायी जायेंगी
युगों से कल्पों तक
बनी रहेंगी
मिटती सभ्यताओं में भी
सुरक्षित रहेंगी
बम, मिसाइल से
नहीं पकड़ पायेगा इन्हें
ड्रोन और रडार
लिखती हूँ
हर हिचकी पर एक कविता
मेरी स्याही का रंग
उसी तासीर का है
हमें जोड़े रखने वाला नेटवर्क
एक हिचकी
जाने कौन-कौन
पढ़ रहा होगा
भविष्य में प्रेम अपना
जाने कितनी तीव्रता का
विस्फोट हो
जब आम किया जाये
अपने प्रेम का
टाइम कैप्सूल
बस तुम यूँ ही रहना
मेरे सैटेलाइट में
जब चाहूँ तुम्हें देख सकूँ
राजनीति के रायते से प्रेम के गलियारे तक...
#इलेक्टोरलबॉन्ड #इलेक्टोरल #राजनीति #सूचनाकाअधिकार #electoralbonds #electoral #hindikavita #election #yrkkh
कुछ भी नहीं सोचती मैं
तुम्हारे बारे में
न ही लेती हूँ
कोई इल्ज़ाम अपने सर.
न सुन पायी उसके मुँह से
कभी अपना नाम सरे राह
न ही हुई कभी हमबिस्तर
जब-जब तुम्हें लगा
कि तुम झमेलों में हो
मैं शिकन हटाती रही
उस माथे की
जिस पर बोसा
बस तुम्हारा हुआ.
तुम्हारा अधूरा प्रेम बनकर
नहीं मिला कभी वो मुझे,
वरन एक शिशु की तरह
जिसे माँ चाहिए
एक विद्यार्थी बनकर
जो शिक्षा की खोज में हो
उसे बुद्ध बनना है प्रेमी नहीं
वो मुझ तक
पुरुषार्थ लेकर नहीं आया,
अपने अंदर का पुरुष
हर बार
वह छोडकर तुम्हारे पास
आया यहाँ
जैसे नदी का पानी
जाता तो है समंदर तक
पर नदी लेकर नहीं
तुम भीगती हो उसमें
मैं तो बस भागती हूँ
हमारी कहानी में
कोई इच्छा नहीं है
कोई चेष्टा नहीं है
प्रत्याशा भी नहीं
एक संयोग से उपजी हुई
कोई पृष्ठभूमि जैसा
कुछ घटा हमारे मध्य
जैसे मिल जाती है
प्रतीक्षा की पीड़ा
किसी-किसी देहरी को
कैसे बाँध सकती हो तुम मुझे
घृणा के बंधन में
मेरी और तुम्हारी तुलना ही क्या
तुम तो
मेरे प्रणय काव्य के सौंदर्य का प्रत्येक भाग भी
स्वयं पर अनुभव कर रही होगी
और वो मेरे लिए
मेरे सुख के दिनों की कविता
एवं पीड़ा में प्रतीक्षा बन पाया
बस इतना सा आत्मसात किया मैनें उसे
अपने भीतर
फिर भी
वो कमीज पर लगा
कोई लिपिस्टिक का दाग नहीं
जो धोकर गायब कर दूँ,
हर शब्द में भाव बनकर
समाहित हो गया है मुझमें
मैं नहीं माँगने आयी किसी दरवाजे पर
‘आज खाने में क्या बना लूँ'
कहने का अधिकार
तुम भी मत चाहना कि मैं
उस पर उड़ेल दूँ 'विदा का प्यार’
मेरा भविष्य
मेरी देह के आकर्षण पर नहीं
शब्दों की संगत पर है
अश्रुओं का उल्कापात नहीं
पलाश की अनल बरसने दो
उसके लाये हुए हर पारिजात को
तुम्हारे चरणों की रज मिले
तम्बू से जब उठे लला अपने महल में आयेंगे
आयेंगे जो महल में संग सिया को भी लायेंगे
लायेंगे जो सिया को दुलारे हनुमंत भी आयेंगे
आये हनुमंत तो अयोध्या के भाग खुल जायेंगे
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मिथिला की दुलारी है जनक की प्राण प्यारी
जनक पियारी अब है अयोध्या की उजियारी
रघुनन्दन सनेही के लिए, दीये हम जलायेंगे
जलायेंगे जो दीये तो संग फाग भी मनायेंगे
सह गये सारे ही कष्ट आया समय विशिष्ट
आया समय विशिष्ट, भाग प्रधान लिखे परिशिष्ट
लिखी जो परिशिष्ट करा दो दाखिल ख़ारिज
करो दाखिल ख़ारिज, माने उसे मौलाना, पुजारी, प्रीस्ट
सोचो हर सनातनी के भाग खुल जायेंगे
तम्बू से रामलला महल में आयेंगे
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