अक्सर
कहाँ मिलता ईश्वर?
ईश्वर, तुम मत सिमट जाना
श्रावण की पार्थी में
या मंदिर के किसी लिंग में
तुम रहना इन निम में!
पूजा को समर्पित मेरी आँखें चिरायु हों!
To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
अक्सर
कहाँ मिलता ईश्वर?
ईश्वर, तुम मत सिमट जाना
श्रावण की पार्थी में
या मंदिर के किसी लिंग में
तुम रहना इन निम में!
पूजा को समर्पित मेरी आँखें चिरायु हों!
फूल मेरा प्रतिबद्ध प्रेमी
भेजता रहता है कितनी ही खुश्बुएँ
हवा के लिफाफे में लपेटकर
मौसम मेरा सामयिक प्रेमी
आता है ऋतुओं में लिपट
कभी वसंत बनकर कभी शीत
तो कभी उष्ण के नाम से
दीया मेरा अबूझा प्रेमी
तकता ही रहे मुझको
और चाहे कि सब तकें मुझे
उसकी लौ में बैठकर
अंधेरा मेरा धुर प्रेमी
लील जाता है दिन को हर रोज
मुझे आलिंगन करने को
गगन मेरा दूरस्थ प्रेमी
देखता रहता है मुझे अपलक तब तक
जब तक मैं छुपा न लूँ ख़ुद को उससे
किसी छत की ओट में
लेखक मेरा विचित्र प्रेमी
मुझे…हाँ मुझे
गढ़कर अपने शब्दों में
नाम ज़िंदा रखेगा मेरा
तब, जब जा चुका होगा इनमें से
हर एक प्रेमी मुझसे दूर
तब, जब मैं भी नहीं रहूँगी
तब, जब कोई भी न रहेगा
तब भी जब सृजन
प्रलय में बदल जायेगा
बस प्रेम रह जायेगा
अपनी आँखों में
नक्शा बाँधकर सोने लगी हूँ अब
सपनों में आ जाती हूँ
तुम्हारे पास
चले आने की आहट किये बिना ही
तुम्हारे सिरहाने बैठे बैठे
पूछ लेती हूँ, मे आई कम इन
और जब तुम कहते हो ना,
धत पगली और कितना अंदर आयेगी
तब माँ कमरे के बाहर तक आकर
लौट रही होती है...
नींद में बड़बड़ाने की बीमारी
ब्याह के बाद ही जायेगी बुद्धू की
मैं, मेरा बुद्धू, कहकर
अनंत प्रेम पाश में
समेट लेती हूँ तुम्हें
"वह दिन कभी तो आयेगा. मनुष्य कभी तो सभ्य होगा. मेरा पूरा जीवन उसी दिन का लंबा इंतजार है..."
सुशोभित जी की यह पुस्तक शब्दों में न लिखी होकर भाव में ढ़ली है. लेखक के मन की व्यथा, सब कुछ सही न कर पा सकने की ग्लानि, करुण पुकार बनकर उभरती है. पशुओं के लिए एक पुकार है तो पढ़ने वालों के लिए पुरस्कार.
पुस्तक को छः भागों में बाँटा गया है. “पाश में पशु” इस व्यथा को चित्रित करती है कि सच को नजरअंदाज कर एनिमल फार्मिंग को सोशल एक्सेपटेंस कैसे मिलती रही है. क़त्लखानों की बर्बरता लिखते हुए लेखक भावुक हो उठता है, “मैं नहीं चाहता कल्वीनो की फ़ंतासी की तरह पशु मनुष्यों को शहरों से बाहर खदेड़ दे…मैं चाहता हूँ कि काफ़्का की तरह हम उन अभिशप्त कल्पनाओं के भीतर पैठ बनायें जो सामूहिक अवचेतन का हिस्सा है…”. वीगन होना कोई ट्रेंड नहीं बल्कि हमारी नैतिक जिम्मेदारी है. दूध के लिए दुधारू पशुओं को दी जाने वाली यातनाएँ और जो दूध नहीं देते उन्हें वेस्ट प्रोडक्ट की तरह कसाई खाने में भेज दिए जाने के विरोध में स्वर तो उठने ही चाहिए. तथ्यों को वैज्ञानिक आधारों पर पुष्ट करते हुए हर एक बात इस तरह से कही गयी है कि आप उसे समझ सकें और जाँच सकें. वैश्विक स्तर पर किन-किन लेखकों ने यहाँ तक कि अभिनेताओं ने पशुओं पर हो रहे अत्याचार को कलमबद्ध एवं भावबद्ध किया है, इस भाग में आप पढ़ सकते हैं.
“कितने कुतर्क” के अंतर्गत नौ कुतर्कों का बिंदुवार बहुत ही सहज माध्यम से उत्तर दिया गया है. न केवल प्रबुद्ध पाठक वर्ग बल्कि बच्चे-बच्चे को समझ में आ जायेगा. जैविकी में प्राणियों के विभाजन में लेखक ने एक सूक्ष्म जानकारी रखी है जो कि बहुत लोगों को ज्ञात नहीं होगी कि हम मनुष्य भी एनिमल किंगडम का ही हिस्सा है. ‘सब शाकाहारी हो जायेंगे तो खायेंगे क्या’ के अंतर्गत लेखक ने आँकड़ों के साथ एक बहुत दमदार बात प्रस्तुत की है कि आज जितनी कैलरी फार्म एनिमल्स को खिलायी जा रही है उसके बदले में बहुत थोड़ा ही प्रतिशत मांस के रूप में प्राप्त होता है. स्वच्छ जल का एक तिहाई हिस्सा एनिमल फार्मिंग पर व्यय किया जा रहा है. वगैरा-वगैरा…धार्मिक आस्था की बात हो अथवा भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर लेखक ने बहुत ही शालीन ढंग से अपने तर्क रखे हैं. भ्राँतियों की काट निकाली है.
भ्राँति- पुस्तक “माँसाहार बनाम शाकाहार” है
तथ्य- यह बहस “जीवहत्या बनाम जीवदया” है
“जीवदया का धर्म” सात अध्याय में संकलित है. इसमें विभिन्न धर्मों में जीव दया के बारे में बताया गया है. कथाओं के माध्यम से उदाहरण भी प्रस्तुत है. पशु बलि पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया है.
पुस्तक का मस्तिष्क “भारत में मांसाहार” पुनः सात अध्यायों में नीतियों का एक कच्चा चिट्ठा है. ब्योरेवार एक-एक बात बतायी गयी है. पशुओं को कमोडिटी कहने पर एक आपत्ति दर्ज है.
अगले आठ अध्यायों का संकलन अगले भाग “पक्षियों की नींद” के अंतर्गत है. इस भाग की हर बात को अपना स्नेह दूँगी. यह पुस्तक का दिल है. लेखक ने पक्षियों-पशुओं के जीवन के सच इतने मर्म से उकेरे हैं कि एक समानुभूति की मिठास हर शब्द से आती है चाहे वह सी एनिमल्स हों, रेप्टाइल्स हों अथवा चौपाये. सोन चिड़िया के गिरने और उसकी पहचान करने से एक मुस्लिम परिवार का लड़का सलीम अली किस तरह पक्षी शास्त्री हो गया, यह इसमें बताया गया है और हाँ मुस्लिम शब्द इस पूरी पुस्तक में मात्र यहीं पर आया है.
पुस्तक का अंतिम भाग “पशुओं का जीवन” जिसमें डोमेस्टिक एनिमल्स, जूनोटिक बीमारियाँ और क़त्ल के नैतिक पहलुओं पर बात के साथ पशुओं के जीवन उनके चेतना और साथ ही काफ़्का की ग्लानि पर भी एक अध्याय है जिसने उन्हें वीगन बनने को प्रेरित किया.
“आख़िरी पन्ना” जो कि मैंने सबसे पहले पढ़ा. इस पन्ने का एक-एक शब्द अपील करता है. हमारी चेतना को सुदृढ़ करता है. हमें पशुओं के क़रीब लाता है.
चेतना के इस स्तर तक पहुँचने के लिए अवश्य पढ़ें.
मैं वीगन क्यों हूँ
(पशुओं के लिए एक पुकार)
लेखक- सुशोभित
हिन्द युग्म प्रकाशन
प्रथम संस्करण २०२४
मैं बदल गयी हूँ पहले से
हाँ मैं बदल गयी हूँ
खोटे सिक्के सी उछाले जाने पर
रोती नहीं हूँ
जश्न मनाती हूँ
फेंक दिये जाने की स्वतंत्रता का
घंटों छत ताकते हुए
छेद नहीं करती उसकी मजबूती में
यह नहीं सोचती
कि तुम मुझसे घृणा करते हो
हाँ अब बदल गयी हूँ
उन ग्रहों में नहीं उलझती
जो कमज़ोर हैं जन्मांक में
जुगाड़ चलाती हूँ
अच्छे ग्रहों की अनुकूलता का
इतनी बदली हूँ मैं
कि कोई भी खाये मेरी मौत का भात
मैं नहीं जानने आऊँगी उनके मन की बात
लौट जाऊँगी यमघंटा से
फटते हैं तो फट जायें बादल
किसी पर भी दुखों के
तुरपाई नहीं करुँगी
मुग्ध नहीं रही अपने इच्छाशव पर
इतनी विरत हूँ कि मरी माछ की तरह
बहाव का आलिंगन नहीं करती
तलहटी को सौंप देती हूँ अपना संघर्ष
और हाँ…
मेरे बदलने की उम्र बहुत लम्बी है
पहिला योग
जादू की झप्पी
दुसरा योग है
लिप ऑन लिप
तिसरा योग
छुवमछुवाई
एक नारियल
टू टू सिप
चौथा योग
बिरवा के नीचे
बदन कर रहे
घिस घिस
पंचम योग है
राहु काल में
अम्मा की
फ्लाइंग चप्पल
छठो योग
पिता का
निशाना रह्ये
सबते अव्वल
सप्तम योग
इसक है रोग
ज्ञान की दाढ़ी
चेहरा लागी
मन को भाये
लौकी, मूँग दाल का भोग
#योगदिवस
कल रात भरी नींद में मुझे चौंक सी लगी. तुम्हारा ख़याल आया. अगले ही पल मैंने ख़ुद को तुम्हारे पास पाया. अंधेरे बंद कमरे में टकटकी लगाये तुम जाने पंखे में क्या देख रहे थे. आँखों से चश्मा निकाल कर साफ करने के लिए कुछ टटोल रहे थे, मैंने अपना दुपट्टा आगे किया. तुमने पंखे से नज़र हटाये बगैर दुपट्टे की कोर से चश्मा साफ कर अपनी आँखो पर रख लिया. मैंने पास रखे जग से गिलास में पानी डालकर तुम्हें दिया. तुम गटागट पी गये. जैसे मेरे पानी देने का इंतजार ही कर रहे थे. मुझे अच्छा लगा. समझ आ गया कि वो चौंक नहीं तुम्हारे नाम की हिचकी थी जो मुझे यहाँ तक ले आयी. मैंने तुम्हारे बालों में हाथ फेरते हुए कहा, रात बहुत हो गयी है सो जाओ. तुमने पंखे से नज़र हटाये बिना ही कहा, तुम आ गयी हो अब सोना ही किसे है. इतना सुनते ही मेरे अंदर का डोपामाइन दोगुना हो गया.
कुछ परेशान हो क्या, मैंने पूछा.
हाँ, कहकर भी तुम टकटकी बाँधे पंखे को ही देखते रहे.
बोलो न क्या बात है, मेरे कहते ही तुम बोल पड़े…
“टी डी पी समर्थन वापस तो नहीं लेगा न?”
मुझे दूसरी चौंक लगी और मैं वापस अपने बिस्तर पर थी.
मुझे तुमसे
लड़ना नहीं था
पर तुम्हारे सामने
खड़े होना था
जब तुम्हारी ओर
बढ़ने लगे
बहुत से हाथ
सहानुभूति के
जब तुम बढ़ाने लगे
अपने दायें बायें
क़द औरों का
तब मेरी ज़िद थी
मुझे तुमसे
आगे निकलना था
'मैं तुम संग प्रेम में हूँ'
यह कोई प्रणय निवेदन नहीं
मेरे मन का माधुर्य भर है
शकरपारे से पगी अपनी दीद
रख देना चाहती हूँ
मैं तुम्हारी हथेली पर
लज्जारुण हो तुम लगा लेना
हथेली अपने सीने से
संध्या विनय के क्षणों में
नीड़ चहकने तक
तुम आकाश सुमन हो मेरा
सौम्य नभ कमल
मेरे विनयी साथी
मेरी तंद्रा का आकर्षण
कल्पनाओं की नीलगिरि से
आती हुई परिचित भाषा
मुझे नहीं पता मैं कौन
और तुम मेरे मन का मौन
घर बैठे कमायें बिना किसी निवेश
जब लुभावने शब्दों की बात आती है तो एक शब्द मेरे ज़ेहन में कौंधता है और वह है रेपटा. हाँ यह वह शब्द है जो मुझे आकर्षित करने वाले शब्दों में से एक है. जाने क्यों इस शब्द से मुझे लगाव है. लेकिन रेपटा अर्थात थप्पड़ का शाब्दिक मायने बहुत कम रहा मेरे जीवन में. हाँ किसी ने कोई जधन्य अपराध किया तो मेरे मुँह से बरबस ही निकल जाता है कि अगर सामने होता तो मैं रेपटा मार देती लेकिन यह कहने सुनने की बातें हैं. अधिकतम गुस्से में मेरे मन में आया एक ख्याल भर है. हाँ यह मानती हूँ कि अगर किसी ने आत्म सम्मान को ठेस पहुँचायी है तो ले देकर सामने ही हिसाब किताब बराबर कर लो. थप्पड़ की गूँज होती है. थोड़ा सा झनझनाहट भी होती है लेकिन कोई ऐसी चोट नहीं आती जिससे टूटन हो. बिना वजह मारा गया थप्पड़ आत्म सम्मान को गंभीर नुकसान पहुँचाता है. कंगना रनौत को लगा थप्पड़ मैं निंदा की श्रेणी में रखती हूँ. थप्पड़ मेरे लिए निंदा का विषय ना होता अगर मामला तुरंत सुलटा लिया जाता (विचार मेरे अपने हैं इसमें किसी का कोई लेना देना नहीं है)
किसी को भी किसी के आत्म सम्मान को ठेस पहुँचाने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि कई बार इन थप्पड़ों की गूँज नहीं हो पाती है और वह डाह बनकर गलाते हैं किसी के मन को. इंसान अवसाद में आकर आत्महत्या तक की ओर क़दम उठा लेता है.
थप्पड़ बस एक थप्पड़ नहीं राजनीतिक दृष्टिकोण से समीकरण होता है व्यवहारिक दृष्टिकोण से सम्मान और अपमान होता है और नैतिक दृष्टिकोण से? इसके बारे में सोचा है कभी?
नहीं न! सोचोगे भी कैसे इस समाज को राजनीति का अखाड़ा जो बना दिया है. नैतिकता किस चिड़िया का नाम है. न तो नैतिकता उसके पास होती है जिसने थप्पड़ मारा न ही उसके पास जिसको थप्पड़ पड़ा क्योंकि इसके बाद समाज में एक थप्पड़ की गूँज से दो धड़े हो जाते हैं. इनमें से एक आत्म सम्मान का वास्ता देकर नैतिक ठहराता है और दूसरा बदले की भावना से ग्रस्त कुंठित ठहराता है. एक थप्पड़ से जितनी गरिमा आहत नहीं होती है इससे ज्यादा थप्पड़ पर हो रहे बहस मुबाहिसे से, विचार विमर्श से, कविता शायरी से, मीडिया चर्चा से होती है. थप्पड़ ट्रेंड करने लगता है. लोग खोज कर पढ़ने लगते हैं. बस यही तो चाहिए ठेलुओं को. नैतिक पतन के साथ-साथ सामाजिक पतन की भी पराकाष्ठा है यह.
.#trending #viral #instagram #explorepage #explore #instagood #love #fashion #reels #follow #trend #like #photography #india #fyp #instadaily #tiktok #followforfollowback #likeforlikes #foryou #trendingreels #trendingnow #style #memes #photooftheday #music #reelsinstagram #viralpost #model #insta
जंगलों में अक्सर चलती हैं सभायें
हिसाब होता है हर रोज संपदा का
कोई सज़ा मुकर्रर नहीं होती
मग़र लाली पर
बस ले जाती है कभी-कभार वह
मात्र इतनी लकड़ियाँ
जितनी आग से
बुझायी जा सके जठराग्नि
इन लकड़ियों के बदले
वह रक्षा भी तो करती है
जंगल, जीवन और प्रकृति की
इस पेड़ के नीचे आज की यह
अंतिम सभा है
हत्या का इस पर स्टिकर लगा है
सुंदर से गछ को मिटाकर
किया जायेगा सौंदर्यीकरण
दहन कर इसकी जड़ों को
करेंगे किसी मल्टीप्लेक्स का अनावरण
@main_abhilasha
चित्र सुशोभित जी की स्टोरी से चुराया था.
#पर्यावरण #पर्यावरण_दिवस #विश्वपर्यावरणदिवस #worldenvironmentday #yrkkh #5june
http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php