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दावाग्नि

कभी-कभी हमारे भीतर का ज्वालामुखी
बाहर के तपते वातावरण को
कितना शांत कर देता है,
जैसे मौसम में
कोई ताप नहीं है, अंतर में निर्विघ्न उमड़ रहे प्रश्न
ताकत रखते हैं
स्वयं को ही मिटा देने की
क्योंकि इनके कोई उत्तर ही नही,
ऐसा लगता है
जैसे
समय ही हमसे
हमारे होने की गवाही मांग रहा।

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मेरी पहली पुस्तक

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