अग्नि मेरा गीत है
मैं निशा की चांदनी
मांग अंधेरा सजा है
भोर के आने से पहले
नर्तनों का गीत हो
तांडव की बेला हो जैसे,
कांपते हांथों से
मेरी देह का श्रंगार कर दो
भाव पर धरकर विभूति
रोम रोमांचित मेरा हो.
तुम अलग
मैं पराकाष्ठा हूं विलग की
नेत्र पर दृष्टि समेटे
खोलने को हों ज्यों आतुर
भस्म दो
तन पर मलूं मैं
शीत मेरा ताप हो...
लेबल: कविता
12 टिप्पणियाँ:
जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
22/09/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-09-2019) को "पाक आज कुख्यात" (चर्चा अंक- 3466) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
शानदार लेखन
अद्भुत।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 24 सितंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद
बहुत सुंदर सृजन।
देर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
बहुत आभार आपका 🙏
देर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
बहुत आभार आपका 🙏
देर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
बहुत आभार आपका 🙏
देर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
बहुत आभार आपका 🙏
देर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
बहुत आभार आपका 🙏
देर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
बहुत आभार आपका 🙏
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