तुम तेज़ हो
तुम ओज हो
तुम रोशनी मशाल की
देखकर तुम्हें, ज़िन्दगी
जी उठी शमशान की
स्वप्न एक कच्ची उमर का
उतावला जो कर गया
भाल पर बांधे कफ़न
वो उतर फ़िर रण गया
रात चांदनी, सुबह
वस्त्र बदल अा गई
डूबकर ओज में
तेज में नहा गई.
श्री अमिताभ बच्चन जी को दादा साहब फाल्के पुरस्कार की बहुत बहुत बधाई 🙏
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 25 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर
देर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
हटाएंबहुत आभार आपका 🙏
वाह ...
जवाब देंहटाएंक्या बात ...
बहुत शानदार।
जवाब देंहटाएंदेर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
हटाएंबहुत आभार आपका 🙏