बहुत गर्माहट देती हैं
शीत ऋतु में तुम्हारी चुप्पियां
जैसे किसी नवजात को माँ ने
अपनी छाती में भींच रखा हो.
एक अरसे के बाद तुम्हारा आना
ऐसे भरता है
हमारी सर्द रातों में गर्मी
जैसे किसी दुधमुँहे के तलवों पर
अभी-अभी की गई हो
गुनगुने सरसों के तेल की मालिश.
छज्जे पर तुम्हारी राह तकते हुए
पहुँचने से पहले ही
किवाड़ खोलने की छटपटाहट
याद दिला ही जाती है
लड़खड़ाते कदमों से बच्चे के आते ही
माँ के अंक में भर लेने की कला.
प्रेम में पगा होता है मेरा हर पल
जब तुम्हें सोचूँ प्रेम उमड़ता है
जब तुम्हें देखूँ प्रेम मचलता है
और जब तुम्हें प्रेम करूँ
प्रेम को भी प्रेम पर गुमान हो उठता है.
Picture Credit: Pexel
8 टिप्पणियां:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (०९-११ -२०१९ ) को "आज सुखद संयोग" (चर्चा अंक-३५१४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
.. जैसे किसी दूध मुहे के तलवों पर की गई हो अभी-अभी गर्म तेल की मालिश वाह कमाल के शब्द लिख डाले आपने कैसे सोच लेती हो आप इतना अच्छा बहुत ही खूबसूरत रचना अभी सुबह-सुबह पढ़ा मैंने बहुत अच्छा लगा....!💐💐
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 09 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह सुखद
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रेम के लौकिक और आलौकिक रूप की 👌👌👌👌
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
iwillrocknow.com
बहुत खूब ...
प्रेम भाव में पगी लाजवाब रचना ...
हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
एक एक शब्द रग में समाता हुआ..!!
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