कानों पर उँगली रख लेती हैं अक्सर
ये तीस पार की लड़कियाँ
रिश्ते के नाम पर
विवाह मोह का जाल भर होता है,
इतनी भा जाती है इनको
अकेलेपन की ख़ुराक़
कि रिश्ता ओवरडोज़ लगता है
इनकी नज़र में,
पैर पर पैर चढ़ाकर
ऑफिस की कुर्सियों पर बैठी ये लड़कियाँ
नहीं चाहतीं महावर के पाँवों से
पति के घर जाना,
जीन्स पहनने के नाम भर से उन्मुक्तता दिखाने वाली ये लड़कियाँ
साड़ी की लंबाई को मीटर में मापती हैं,
औरों के सपने बुनते हुए
रख आती हैं अपनी आँखें गिरवीं,
चलते-चलते ख़ुद को ले आती हैं
भ्रम के दोराहे पर,
लड़के-लड़कियों को अपना दोस्त बताने वाली
ये लड़कियाँ अक़्सर भूल जाती हैं
कि दिन भर उजाला जीने के बाद
जब रात को इनके बिस्तर पर अँधेरा सताएगा
तो कोई दरवाज़ा इनकी आहट पर नहीं खुलेगा
कोई नहीं आएगा इनका हाल पूछने
......
अगर कोई आएगा तो बस
थका हुआ प्रेमी
हारा हुआ पति
मदिरालय से वापसी करता
बेबस इंसान
और उँगली उठाता हुआ समाज.
यहाँ तक कि
वो गुज़रा वक़्त भी नहीं आता इन तक
कि अपनी ग़लती सुधार सकें
धीरे-धीरे कोशिश करती हैं सामाजिक होने की
ढूँढने लगती हैं औरों के बच्चों में
अपनी मुस्कान
चॉकलेट से भर जाता है बैग
हर चॉकलेट के बदले मिलती जो है
जादू की झप्पी
फ़िर तिरती है इनकी आँखों में
बीते वक़्त की नमी
जब ये दिए जाने वाले प्रेम के लिए भी
शक़ की नज़र से देखी जाती हैं
जहाँ भी जाती हैं
बचाए जाते हैं स्त्रियों के पति
इनकी नज़रों से,
दूर रखे जाने लगते हैं बच्चे
इनके मोहपाश से.
कानों पर उँगली रखने वाली
ये तीस साल की लड़कियाँ
चालीस पार करते ही
बन जाती हैं उजड़ा हुआ गणतंत्र
अगर रुदन भी करें
तो कान बंद करती हैं ख़ुद के ही
कि कहीं चीख़ दम न घोंट दे.
Pinterest Image
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 25 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
जवाब देंहटाएं