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प्रेम का महाकाव्य

मैं वो शहर हूँ
जिसके किनारे दर्द की झील बहती है
अक़्सर प्रेमी युगल
एक-दूसरे को सांत्वना देते दिख जाते हैं.
मैं वो पेड़ नहीं बनना चाहता
जिनकी शाखों में उनके प्रेम को अमरत्व मिले
इससे बेहतर है, मैं वो कागज़ बनूँ
जिस पर प्रेम न पा सकने की
वो अपनी रोशनाई उड़ेल दें...
अमर होना चाहूँगा मैं
प्रेम में डूबा दर्द का महाकाव्य बनकर.

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