जब भी उदासी पढ़ती हूँ तुममें
देख लेती हूँ मुस्कुराते हुए तुम्हारे चित्र
बचपन के भी...कोशिश करती हूँ
तुम्हें पहचानने की अपनी आँखों से
प्रेम में आँखें कभी झूठ नहीं बोलतीं
मेरा 'आई लव यू' तुम्हारे लिए
तुम्हारी उपस्थित अनुपस्थिति में
बहुत से पीड़ादायक पलों को परे कर
हर्ष की अनुभूति में लिपटा एक बोसा.
मेरी भोर की नींद तुमसे मिलने को
उचटने जो लगी है...
मेरी हिचकियों में भी अब तुम्हारी स्मृति नहीं
प्रेम कविताओं में पगे पल रहने लगें हैं
आज दे रही हूँ तुम्हें प्रेम में पगे ढाई आखर.