जब कभी गुज़रोगी मेरी गली से
तो मेरी पीड़ा तुम्हें किसी टूटे प्रेमी का
संक्षिप्त एकालाप लगेगी
पूरी पीड़ा को शब्द देना कहाँ सम्भव?
मैंने तो बस इंसान होने की तमीज़ को जिया है
अपनी कविताओं के ज़रिए...
मन के गहन दुःख को जो व्यक्त कर सकें
वो सृजन करने का मुझमें साहस कहाँ?
डूबते सूरज की छाया में मैं मरघट लिखूँगा
तुम अपने स्मित की अंतिम स्मृति पढ़कर चली जाना.
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार!
हटाएंबहुत अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंआभार!
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जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
07/03/2021 रविवार को......
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धन्यवाद
स्नेहिल आभार!
हटाएंगहन पीड़ा अभिव्यक्त हो रही । भावपूर्ण ।
जवाब देंहटाएंआभार!
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