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विश्वास का तारा

अँधेरे जब हँसते हैं

तो बहुत ज़ोर ज़ोर से हँसते हैं

बिल्कुल तुम से

मैं उस हँसी को महसूसने के लिए

पूरा दिन एक पैर पर चलकर

चलते-चलते निकाल देती हूँ

फिर भी उजालों से

कोई शिकायत नहीं करती कभी

और तुम आते भी हो तो

मौन के रेशमी सूत में लिपटकर...

एक हठ से धुला रहता है तुम्हारा चेहरा.

तुम्हारा मौन टूटना कहीं मुश्किल है

आकाश में विश्वास का तारा टूटने से.

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना।
    शिव त्रयोदशी की बहुत-बहुत बधाई हो।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2064...पीपल की पत्तियाँ झड़ गईं हैं ... ) पर गुरुवार 11 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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