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नाॅट फार यूज

 हर प्लीज का, मतलब रिस्पेक्ट नहीं होता

कुछ प्लीज किसी को मजबूर करने के लिए भी

'यूज़ किए जाते हैं

'नो' कहना सुरक्षित रखो मतलबी बातों के लिए.

आधी रात को 'सिगरेट पीने की इच्छा'

करने वाले दोस्त का 'प्लीज’

अगर तुम्हें मन न होने पर भी

दस नब्बे चौराहे के एकाँत पर खड़ा कर सकता है

तो मत भूलो कि एक दिन

बलात्कारी की तरह कटघरे में भी ला सकता है

माँ हमारी आधी गल्तियों पर पर्दा डालती हैं,

पिता या तो अति भावुक होते हैं या फिर अति क्रोधी

दोस्त आधे इधर होते हैं आधे उधर

सिब्लिंग, वो तो ख़ुद ही उसी में डूबे हैं

सोच रहे हो हेल्प किससे लें?

तुम्हारा अपना विवेक कहाँ है?

आधी रात को सिगरेट फूँकने से लेकर

वोट के अधिकार तक अपने निर्णय स्वयं करो


सोचो इलेक्टोरल बॉड्स को जानने का

हमारा अधिकार है या नही

सोचो यदि केजरीवाल, गुनहगार है

तो कितनी देर में पहुँचा सलाखों के पीछे

सोचो शिक्षित प्रत्याशियों के नाम पर

आम सहमति क्यों नहीं बनती

सोचो वोट एक पार्टी के नाम पर लेकर

जूते दूसरी पार्टी के चाटते हैं

सोचोगे कैसे

तुम्हें तो बस सिगरेट, साँप, लड़की, में उलझना है

तुम्हें तो बस यह सोचकर मरना है

कि अकेले मुझे खप कर क्या ही करना है


8 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर रचना

आलोक सिन्हा ने कहा…

सुन्दर

Onkar ने कहा…

बहुत सुंदर

हरीश कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

राम नवमी की हार्दिक शुभकामनायें

Prakash Sah ने कहा…

राजनीतिक चोट और वो भी हमारे आसपास में उपस्थित पात्रों का उदाहरण लेकर। बहुत खूब।

Rupa Singh ने कहा…

सुंदर कटाक्ष...सोचो
आपको सपरिवार तथा ब्लॉग के सभी पाठकों को राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

सोचने का समय है लेकिन राजनैतिक स्वार्थ हमारे स्वार्थों से इस तरह जुड़ गए हैं कि कुछ सोच नहीं पाते . सोचते हैं तो सिर्फ इतना कि हमारा स्वार्थ किसमें हैं . बहुत बढ़िया रचना . हर काल का यही सच है .

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