बुधवार, 1 मई 2024

मजूर

अन्न उगाया

सूत बनाया

बाग लगाये

घर बनाये

जीने से मगर मरने तक

मेरे हिस्से कुछ न आये

श्रमिक जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी

सूखे आँसू, मिले न रोटी, नून और पानी

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6 टिप्पणियाँ:

यहां 1 मई 2024 को 8:50 am बजे, Blogger सुशील कुमार जोशी ने कहा…

मोदी जी नाराज हो जायेंगे :)

 
यहां 1 मई 2024 को 11:53 pm बजे, Blogger आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर

 
यहां 3 मई 2024 को 12:27 am बजे, Blogger Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना

 
यहां 15 जनवरी 2025 को 3:06 am बजे, Blogger रोली अभिलाषा ने कहा…

सही कहा आपने. ☺️

 
यहां 15 जनवरी 2025 को 3:06 am बजे, Blogger रोली अभिलाषा ने कहा…

आभार!

 
यहां 15 जनवरी 2025 को 3:06 am बजे, Blogger रोली अभिलाषा ने कहा…

आभार!

 

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