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ऐसी है मेरी वो!

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 वो दिन से लम्हे, चेहरे से नूर
और कभी-कभी तो
मुँह से बातें भी चुराती है
ऐसी है मेरी वो!
मुझे मेरे नाम से बिंदास बुलाती है,
कुछ ग़लत मेरे नाम का
सुनती है न सुनाती है;
मुझको तो वो सौ बार मनाती है
मगर खुद भी रूठ जाती है;
उसके झगड़ने की अदा उफ्फ!
सौ प्रश्नों की सूची बनाती है,
उत्तर एक का भी नहीं पाती है,
मेरी शिकायतों पर हैरान
थोड़े से ही परेशान,
मेरे लिए तो खुद को भी सताती है,
ऐसी है मेरी वो!
दुनिया की कोई बात उसे अच्छी न लगे,
मेरे बगैर कोई रात उसे अच्छी न लगे,
कहती है इस दिल की तरह
तुम्हारा हर दिन भी तो मेरा है,
मेरे बगैर धूप-छांव बरसात उसे अच्छी न लगे,
मुझसे मुतमईन हर दुनिया कविता में सजाती है,
ऐसी है मेरी वो!
मेरी आँखों की खुशी पढ़ती है
अपने आंसुओं का दर्द छुपाकर,
जीती है संग मेरे हर पल
बिना रिश्ते के हर बन्धन निभाकर,
मैं कहीं छुपना भी चाहूँ
किस कदर रोती है मुझको बुलाकर,
वो जंगली बिल्ली है मेरी,
प्यारी है मुझे भी तो,
दुलारती है मेरे वजूद को सीने से लगाकर,
ऐसी है मेरी वो!

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