तुम्हें ज़िंदगी कह तो दिया

उस रोज़ पूछा था किसी ने हमसे
तुम्हारा नाम क्या है
हमने ये कहकर उन्हें
मुस्कराने की वजह दे दी
कि एक दूसरे का नाम न लेना ही तो
हमारा प्रेम है...
कितने बावले हैं लोग
कि वो तुम्हें कहीं भी ढूंढ़ते हैं
मेंडलीफ की आवर्त सारणी में,
न्यूटन के नियम में,
पाइथागोरस की प्रमेय में,
डार्विन के सिद्धांत में,
अंग्रेजी के आर्टिकल में,
हिंदी के संवाद में,
विषुवत रेखा से कितने अक्षांश की
दूरी पर बसते हो,
जानना चाहते हैं अक्सर लोग
बातों ही बातों में.
पर हम तो तुम्हें बस
ज़िन्दगी के नाम से जानते हैं.
कैसे कहें लोगों से
हम तुम्हें याद तक नहीं करते
तुमसे निकलने वाली चमक को
आइरिश अवशोषित कर
उर तक प्रेषित कर देता है,
और जब तुम हृदय में हो
तो निकट दृष्टि दोष होना स्वाभाविक है.
तुम हर कदम इस तरह साथ हो
कि तुम्हारी छाया में
अपना अस्तित्व खोना
हमें अप्रतिम होने का भान कराता है,
अनुभव करते हैं हर रात जब तुम्हें
अपने बिस्तर की सिलवटों में
गर्व होता है...
जीवन में तुम्हारे होने पर,
कि कितने ही और जन्म मांग ले
ईश्वर से
जीवन की समानांतर पटरी पर चलने को
तुम्हारे साथ
तुम्हारे लिए
नाम के नहीं...जन्म-जन्मांतर के साथी.

8 टिप्‍पणियां:

Anuradha chauhan ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत सुन्दर ...गूढ़ अर्थ लिए...बेहतरीन रचना।

Roli Abhilasha ने कहा…

देर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
बहुत आभार आपका 🙏

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार मान्यवर!

Roli Abhilasha ने कहा…

देर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
बहुत आभार आपका 🙏

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