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वो

नज़्म में
लिपटकर
रोटियाँ नहीं आतीं

कोई तो जगह
बता दो साहब
जहाँ बेची,
बेटियाँ नहीं जाती

है वो कौन सा
यौम-ए-आशूरा
जब काटी
बोटियाँ नहीं जाती

दिल होता
तो पिघलता
इन नामुरादों का
युग बदलता
और खींची
द्रोपदियों की
चोटियाँ नहीं जाती

हाथी नहीं हैं ये
कुत्ते भी नहीं हैं
नथुनों में
इनके रेंगने
चीटियाँ नहीं जातीं

3 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सटीक

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

रोटी के बिना कहीं कोई भूखा मरे
या फिर
बेटी की कहीं अस्मत बिके
ऐसी छोटी-मोटी बातों पर अगर वो गौर करने लगे
तो फिर
वो मुल्क शाइनिंग इंडिया बनाएँगे कैसे?
उसे विश्वगुरु बनाएंगे कैसे?

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

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