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स्त्री रक्त पिलाकर क्या रक्तबीज पालती है?

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स्त्री को मानव न समझकर
अबला समझने वाले ए सबल पुरुषार्थियों,
रे दम्भी समाज,
मत पिला इन कानों को तेजाब का अमृत,
अगर ये आंखें बेकाबू हो गयी
तो मेरे सीने का दर्द
तेरी ज़िंदगी पर
ज्वालामुखी की मानिंद बरसेगा,
कब तक बिठाएगा मुझे
परीक्षा की वेदी पर ये समाज,
जिस दिन कदम उठ गया
रौंद जाएगी
दुष्टता की ये सत्ता खुद-ब-खुद,
मूकदर्शक होकर देखोगे तमाशा,
उस दिन ये मत कहना कि 
मेरे अवचेतन मन को जगाया क्यों नहीं,
मौका है अब भी सुधार खुद को
और संवारने दे मुझे
सृष्टि के नए सृजन की कहानी,
तुझे कोख में पालते वक़्त ही इतिश्री की होती,
अगर भान होता तू कलंकित करेगा,
एक स्त्री ने पुरुष को
बंधक बनाकर नहीं
रक्त पिलाकर नौ महीने सींचा,
मत कर अपमान उस ममता का,
मत जमा पाँव गुनाह के दलदल में,
तेरे घर में भी एक राजकुमारी होगी 
उसका सोच,
तेरे जैसी जाने कितनी
निगाहों के हवस के दायरे में होगी,
सोच एक बार
एक मासूम लड़की
ज़िल्लत में जी रही
तू हरकत पे हरकत किये जा रहा,
अगर अब भी न सुधरा
तो डूब जाएगा
उसके आंसुओं की बाढ़ में,
क्या बोला था, 'नपुंसक हो जाऊं'
अरे नपुंसक नहीं
तेरा दिमाग बंजर हो जाएगा,
अगर रक्तबीज से
किसी दर्द की फसल लहलाहएगा।

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