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मेरा अस्तित्व

आज बच्चे को अस्पताल ले जाना था..ऑफिस से छुट्टी लेनी पड़ी..पहुंचने में देर हो गई नम्बर आने में वक़्त था..पतिदेव मुझपर बरस पड़े, 'तुम्हारी वजह से हुआ ये, ऑफिस में लंच के बाद पहुंचने को बोला था अब क्या करूं?'
'मैडम आप प्लीज किनारे आकर लड़ाई कर लीजिए, मुझे झाड़ू मारना है' मैं स्वीपर की बात पर किटकिटा कर रह गई।
'तुम गेम खेल रहे हो और तुम्हारी वजह से मैं टॉर्चर हो रही हूं। सौ बार बोला है वक़्त देखकर काम किया करो।' बेटे के हाथ से मोबाइल लेकर मैं सुकून की तलाश में फेसबुक लॉग इन करके किनारे बैठ गई।
यही कोई 10 मिनट के बाद बॉस की प्रोफाइल पर एक अपडेट आती है, '.... निःसन्देह एक कर्मठ एम्प्लॉई थीं पर ऑफिस से बेटे की बीमारी का बहाना करके छुट्टी लेकर फेसबुक पर सक्रिय पाई जाती हैं। मैं नहीं चाहता कि इनकी इस हरकत का असर फर्म के अन्य एम्प्लॉई पर पड़े। इनकी सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त की जा रही हैं।'
'तभी कहता हूं एक भी काम सही से नहीं होता तुमसे। क्या जरूरत थी इसकी...' पतिदेव का तंज मेरे रोष को और बढ़ा गया। बहुत मुश्किल से हाथ आई जॉब मेरे सपनों को किरच-किरच तोड़ रही थी और मेरा अस्तित्व प्रश्नचिन्ह के घेरे में था।

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मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php