...यक़ीनन हम इंतज़ार में हैं


कभी तो थोड़ा हंस दिया करो
जब हम खुश होते हैं,
कभी तो दिल बहला दिया करो
जब ये आंसू रोते हैं,
उस छोटी सी तिपाई पर
याद है न,
नुक्कड़ वाली दुकान में
जब वो 'चाय' ठुकराई थी हमने
और वो खूबसूरत सा इतवार
जब 'कॉफ़ी' का ऑफर था तुम्हारा
हमने बस इतना ही तो कहा था
...हम इंतज़ार करेंगे 
वक़्त अच्छा होने तक...
कितने खूबसूरत अहसास
दे जाते हो कभी,
बेख़ौफ़ घूमना
बेवजह हँसना
जैसे समय और नज़ारे
तुमने हमारी चुन्नी में टांक दिए थे,
आज वक़्त तुम्हारा है
मगर तुमने रिश्ते की
एक-चौथाई जमीन से भी
हमें बाहर कर दिया,
हम यादों की मखमली घुटन में हैं
वक़्त-बेवक्त, ख़याल दर ख़याल
तड़प है कि
रिसती जा रही है,
आज हमें वो 'चाय'
वो नुक्कड़
वो दुकान
और तुम्हारा आग्रह
बहुत याद आ रहे हैं,
आओ न!
फिर एक बार
फिर एक शाम
'चाय' के नाम,
हम भी जी लें थोड़ा
भले ही किश्तों में।

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php